शेर और बकरी के बीच
यह समय कुछ ऐसा है
मैं सिर्फ दो तरह की कविता लिख सकता हूँ
जैसे सिक्का हवा में उछले
शेर आयेगा या फिर बकरी
तीसरी चौथी पांचवी या छठी
कोई सम्भावना नहीं.
शेर आया तो उपसंहार
बकरी आई तो चूल्हा जला
बड़े दिनों के बाद
स्वाद को जिह्वा पर जगह मिली
मौत और चटख भूख के बीच
सिर्फ अनंत खालीपन है.
आरम्भ से पहले अंत तय है
रंगों की पिटारी में दो ही
रंग हैं
सफेद या स्याह
पाप और पुण्य के मध्य
जीवन बेवजह थरथराता है
सब एक दूसरे की अनुकृति या प्रतिकृति हैं.
हाशिये के दोनों ओर
घुटने पर झुके लोग हैं
करना तो चाह रहे हैं प्रार्थना
पर केवल मिमिया भर रहे हैं
इस दोरंगी दुनिया में
शेर का बकरी के बीच
रक्तरंजित उदासी है.
रक्तरंजित उदासी है.
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