सेकंड सैटरडे को मरा आदमी
उस दिन शनिवार था
वह आदमी तो चुस्त
दुरुस्त था
गलत वक्त पर अनायास मर
गया
लगभग आसमयिक
मरने से पहले दे गया देह
स्थानीय मेडिकल
कॉलेज को.
गर्मी की भरी दोपहरी
में
वह अपने शरीर को
पलंग पर छोड़
आदतन चुपचाप फ़रार हो
गया
घरवालों ने कॉलेज
वालों को बताया
मृतक के इच्छा पत्र
से लेकर आधार पैनकार्ड
पासपोर्ट साईज फोटो तक
सब है पांच प्रतियों में
जल्द आओ मालवाहक
लेकर और अपना सामान उठा ले जाओ.
कॉलेज के फोन से निकली मशीनी आवाज़ ने कहा
मान्यवर आज सेकंड
सैटरडे है, कुछ न होगा
कृपया सोमवार को दोबारा
कांटेक्ट करें, असुविधा के लिए खेद है
तब? तब तक? घर में
चिंतातुर फुसफुसाहट गूंजी
शोक मनाएं मृत्यु का
या फिर उत्सव जैसा चाहें.
लोगों को फुरसत से
शोकाकुल हो लेने दें.
तभी हांफती कांपती
एक मोहतरमा आई
उनका सीना सांस लेने
की जल्दबाज़ी में
झटपट ऊपर नीचे होता
बोली-हमें अभी इनकी
आँख ले जानी हैं
परसों तक ये बेकार
हो लेंगी
घरवाले सोचते रहे कि
कोई नासमझ बच्चा चीख उठा
क्या बाबा समूचे
वीकेंड बिना आँखों के सोते रहेंगे.
वह वाकई बहुत बड़ा
आदमी था
भावुकता से भरा लगभग
मनुष्य जैसा
मरने से पहले आना-पाई
का हिसाब कर गया
पर मरते समय बड़ी चूक
हुई उससे
वर्किंग-डे में मरता
तो कोई झंझट न होता
वातानुकूलित केनोपी
में देह धर, दिया जला
दान की देह उठाने वालों का
निरर्थक इंतजार तो न
करना होता.
भावपूर्ण
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