बरसों बरस की डेली पैसेंजरी के दौरान रची गई अनगढ़ कविताएँ . ये कवितायें कम मन में दर्ज हो गई इबारत अधिक हैं . जैसे कोई बिगड़ैल बच्चा दीवार पर कुछ भी लिख डाले .
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मोची राम
लड़कियों के खवाब कोई कहीं घुमाती होगी सलाई रंगीन ऊन के गोले बेआवाज़ खुलते होंगे मरियल धूप में बैठी बुनती होगी एक नया इंद्रधनुष. लड़कियां कितनी...
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सुबह सरकंडे की कुर्सी पर बैठ कर वह एक एक वनस्पति को निरखता माली के आने की बड़ी बेसब्री से बाट जोहता वह मौसम से अधिक माली क...
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उसने लड़कों की तरह अपनी पेंट की दोनों जेबों में हथेलियों को छुपाया. इससे पहले अपने लहराते बालों को करीने से इस तरह सरकाया वह कुछ...
सारी दुनिया भटक कर
जवाब देंहटाएंफिर पिता की यादों पर लटकना
एक एक सपने पर चटकना
कितना अच्छा है मटकना।