तीन तिलंगे और लेखक
घुटन भरे अपने कमरे में
देश दुनिया से बेपरवाह
लेखक रंग रहा है
कागज दर कागज .
छापे खाने में पसीने में तरबतर
श्रमिक दे रहे हैं
लेखक के लिखे को
एक सुंदर आकार .
प्रकाशक किताबों के ढेर को थामे
खड़ा है नतमस्तक
कमीशनखोर की देहरी पर
खीसें निपोरता .
दीमकों को आ रही है
ताज़ा कागजों की गमक
उनकी भूख का इंतज़ार
अब खत्म होने को है .
कुछ ही देर में मुक्कमल हो जायेंगे
महाभोज के सारे इंतजाम
जिसमें ये तीन तिलंगे जीमेंगे
अपने अपने हिस्से का माल .
लेखक अपनी धुन में ऐंठा है
ख्वाबों की हरी डाल पर बैठा है
हरदम मिटठू मिटठू करता है
जीते जी रोज ही मरता है .
...ठीक है !
जवाब देंहटाएंतिलंगे ण्क दिन बन पतंगे जल मरेंगे
जवाब देंहटाएंkhoob likha aapne...accha laga..
जवाब देंहटाएं