मेरा नाम
न इससे अधिक कुछ
न इससे कम
एकदम पारदर्शी
इसमें मेरा अक्स तुम्हें
ढूंढें न मिलेगा .
अनेक अन्वेषी आये
मेरे नाम में
मेरी शिनाख्त तलाशते
और चले गए निराश
सर खुजाते .
मैं वहां था ही नहीं
उनको मिलता कैसे ?
मेरा नाम हो या किसी का भी
एक सूनी सडक है
जहाँ दिशा बोध की
हमारी सारी पारंपरिक समझ
गडमड हो जाती है .
मेरा नाम और बहुत से नामों की तरह
किसी बाजीगर की पोटली में
तमाम ऊलजलूल चीजों की तरह
सदियों से बेमकसद पड़ा है
इसके बावजूद नाम का तिलिस्म है
कि टूटता ही नहीं .
मेरा नाम यदि तुम्हें याद हो
तो एक बार वैसे ही पुकारो
जैसे कभी राजगृह त्याग कर जाते
सिद्धार्थ को यशोधरा ने
अपनी नींद के बीच
निशब्दता में पुकारा था
मैं अपने नाम को
उसकी अर्थहीनता में
फिर से याद रखना चाहता हूँ .
होली के दिन कीकविता कहां है निर्मल भाई
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