रात के दस बजे
रात के सिर्फ दस बजे
हैं
और शहर में बकायदा रात
हो चुकी है
जिसके बारे में धारणा
यह है कि रात होती ही इसलिए है
ताकि जैसे तैसे पेट को
भर लिए जाने के बाद
चारपाई पर औंधे मुहँ
गिर कर सोया जा सके
अगली सुबह उठने वाले
सवालों से बेपरवाह
किसी भी तरह की उम्मीद
को
जूठे बर्तनों की तरह कोने के हवाले करते हुए .
रात के सिर्फ दस बजे
हैं
जिंदगी के कुछ अपरिहार्य सबूतों के सिवा
अधिकांश साक्ष्य गायब हो चुके
हैं .
चंद सिरफिरे लोगों के
मस्तिष्क की हांड़ी में
अँधेरे के खिलाफ बगावत
के पुलाव पक रहे है
ये लोग फर्ज़ी सपनों के
खिलाफ
लामबंद होने की कोशिश
में हैं .
और इनकी नींद पर
सवालिया निशान लटका है
.
रात के सिर्फ दस बजे
हैं
राज्य के गुप्तचर गली
गली घूम रहे हैं
जागते हुओं की हरारतों
को सूंघते
प्रत्यक्षतः सोये हुए शहर
की धड़कन में
विस्फोट से पहले की टिक
- टिक को सुनते .
रात के सिर्फ दस बजे
हैं
शहर के घंटाघर पर लगी
घड़ी
सदियों से दस बज कर दस
मिनट ही बता रही है
यह समय यहाँ से होकर कब गुजरा था ,
दिन में बीता था या रात
में
किसी को न तो पता है
और न जानने की दिलचस्पी
है.
इस घड़ी के शीशे के बारे
में
कम- से- कम मैं कुछ
नहीं जानता .
रात के सिर्फ दस बजे
हैं
अपने बसेरे से अंगडाई
भर कर उड़ा चमगादड़
घड़ी की सुईं पर जा फंसा
है
और इतिहास के पन्नों
में अटका हुआ शहर
एक मासूम परिंदे की
नादानी से
अनायास जाग उठा है .
रात के सिर्फ दस बजे
हैं
लोगों को नीम अँधेरे
में सुनाई दे रही है
एक चमगादड़ की फड़फड़ाहट .
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