तब समझ लेना
जब खेत खलिहान में
लहलहाती
दूध से भरी गेहूं की
बालियाँ याद न आयें l
गर्म दूध को पीने से
पहले
फूंक मार कर उसे
ठंडाते हुए
गाय के थन में अपना
जीवन टटोलते
बछड़े का अक्स
सामने न उभरे l
पानी पीने के लिए
गिलास को मुहँ से
लगाते ही
कोसों दूर से मटकी
भर जल लाती
बहुरंगी ओढ़नियों से
छन कर आता
पसीने से लथपथ संगीत
सुनाई न दे l
रात के घुप्प अँधेरे
में
सुदूर गांव से आती
सिसकियाँ और
मनुहार
सुनाई देनी कतई बंद
हो जाएँ l
गर्मागर्म जलेबी को
खाते हुए
गांव वाली जंगल
जलेबी का
मीठा कसैला स्वाद
जिह्वा पर
खुदबखुद न तैर
जाये l
तब समझ लेना
तुम चले आये हो
अपने घर बार से दूर
इतनी दूर
जहाँ से वापस लौट
आने की
अमूमन कोई गुंजाईश
नहीं रहती l
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