दोस्त जो चला गया समय के आरपार
एक दोस्त और चला गया
बहुत जल्दी में था
चाहता तो ठहरता कुछ दिन और
कम से कम तब तक जब कोई कहता
कविता के सच पर
मुश्किल हो रहा है यकीन करना।
वह अपनी कविता में
समय की आँखों में आँखे डाल
पंजा लड़ाने की बात करता
उसका कांपता हुआ बायाँ हाथ
बता देता कि
सब वही नहीं है जो वह लिखता है।
समय की आँखों में आँखे डाल
पंजा लड़ाने की बात करता
उसका कांपता हुआ बायाँ हाथ
बता देता कि
सब वही नहीं है जो वह लिखता है।
उसके लिए कविता में उतरना
लगातार होता जा रहा था कठिन
जैसे चार कदम चलता हुआ
वह् हांफ जाता
कहता ,वक्त मिले तो
पढ़ना वह भी जो उसने नहीं लिखा।
लगातार होता जा रहा था कठिन
जैसे चार कदम चलता हुआ
वह् हांफ जाता
कहता ,वक्त मिले तो
पढ़ना वह भी जो उसने नहीं लिखा।
वह शब्दों के चप्पू से
जिंदगी की जर्जर नाव
खेने की पुरजोर कोशिश करता
खोजता भाषा का खोया तिलस्म
उसे बिल्कुल नहीं पता था
टूट चुका है कविता का जादू।
जिंदगी की जर्जर नाव
खेने की पुरजोर कोशिश करता
खोजता भाषा का खोया तिलस्म
उसे बिल्कुल नहीं पता था
टूट चुका है कविता का जादू।
उसे जाना ही था इसी तरह
जैसे सबको जाना है एक दिन
सराय में मुसाफिर का ठहराव तय होता है
और आदमी की सांसों की गिनती
जैसे सबको जाना है एक दिन
सराय में मुसाफिर का ठहराव तय होता है
और आदमी की सांसों की गिनती
उसकी कविताओं में उसे ढूँढने की
जिम्मेदारी अनायास आन पड़ी है।
जिम्मेदारी अनायास आन पड़ी है।
वह समय से नहीं हारा
जीत भी नहीं
पाया यकीनन
बस साथ चलते चलते
चला गया समय के आरपार अचानक
घड़ी के अंदर जो टिकटिक करता है
समय केवल वही नहीं होता।
चला गया समय के आरपार अचानक
घड़ी के अंदर जो टिकटिक करता है
समय केवल वही नहीं होता।
दोस्त, जाने
से पहले इतना मौका तो देते
हांफते कांपते हम साथ साथ चलते
तमाम कविताओं का पुनर्पाठ करते
सूखी हुई पत्तियों पर एहतियात से पाँव रखते
किसी वीरान सड़क पर दूर तलक
बीच बीच में खुद से बतियाते हुए।
हांफते कांपते हम साथ साथ चलते
तमाम कविताओं का पुनर्पाठ करते
सूखी हुई पत्तियों पर एहतियात से पाँव रखते
किसी वीरान सड़क पर दूर तलक
बीच बीच में खुद से बतियाते हुए।
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