कवि इस तरह क्यों हंसा
वह गहरी उदासी के
बीच
अनायास निहायत
बेहूदा तरीके से हंस पड़ा
फिर देर तक सोचता
रहा
क्या किसी अनहोनी के
फर्जी अंदेशे पर हंसा या
साइकिल चलाना सीखती बच्ची
के
बेसख्ता पक्की सडक पर गिर पड़ने पर हंसा
बेसख्ता पक्की सडक पर गिर पड़ने पर हंसा
हंसा इसलिए कि इसकी
कोई वजह न थी
एक बात तय है कि
किसी षड्यंत्र के
तहत उसने यह न किया होगा.
कवि के लिए हंसना या
रोना कभी सहज नहीं होता
उदास बने रहना ऐसा
ही है
जैसे कागज पर
अक्षरों जैसे चील कौए उड़ाने से पहले
पेन्सिल की नोक को सलीके से
नोकदार बनाना
लिखने लायक रूपक को बटोर लेना
अनुमान है कि उसका हंसना
घनीभूत अवसाद में महज़ बुदबुदाना रहा होगा.
वैसे कायदा तो यह था
उसे हंसना ही था तो
भीतर ही भीतर चुपचाप
हंस लेता
जैसे अमूमन गम
गुस्से या गहन आनंद को
धीरे –धीरे अपने अंदर
घोलता हैं.
जैसे बिना ध्वनि का
इस्तेमाल किये
करता हैं
संवाद
मंथर गति से बहती
हवाओं से
फूल की सुगंध और रंग
से
परिंदों की परवाज़
से.
कवि होने का यह मतलब
नहीं
कुछ भी कर बैठें खुलेआम
लिखना लिखाना हो
मुफ़्त में यहाँ वहाँ से मिली डायरी के पन्नों पर लिखे
बेहतर यही कि मन ही मन करें यह फिजूल काम
समझ ले
बेवजह हंसी का फलक बड़ा धारदार होता है
इससे कौन कितना आहत हो उठे
यह बात ठीक से कोई नहीं जानता .
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