एक बार .........
एक बार बस एक ही बार
किसी दिन किसी लम्हे
मुझे लगा
कि शायद यह प्यार है
कान के नज़दीक की
शिरायें
हौले से कम्पित हुईं
कनपटी पर ताप बढ़ा कि
भभक उठा पूरा वजूद
यह आवेग जैसा
कुछ था बेशक
मुझे यकीन नहीं होता
यकीनन.
आदिम प्यार के किस्से लोक में प्रचलित हैं
उनसे इतर मेरे पास
दुनियावी पैमाने से मापने के
इनेगिने कदीमी उपकरण
हैं
जाड़ों में धूप
की लकीर जब
जर्जर हुए भुतही
इमारत के कंगूरे पर जा टिके
तो मानना पड़ता है कि
अब अंधेरा नापने को है समूचा दिन.
प्यार सिर्फ इतना ही
है बस इतना-सा
लगे कि मन के भीतर
कुछ प्रत्याशित घटा
कोई तेज रफ्तार
रेलगाड़ी गुजरे और
पटरियों के नज़दीक के
खेतों में उगी
गेहूं की ताजातरीन
बालियों में हरकत हो
हवा में घुल जाए गेहुँआ
दूध की अनचीन्ही गमक.
मैंने बार –बार खुद
से पूछा
क्या यही है
प्यार की गीली जमीन से होकर गुजर जाना
जिस पर ठहरे उदास पदचिन्हों
को
प्रेम कथाओं के
पन्नों में संरक्षित कर
हम सदियों से बेवजह मुग्ध
हुए जाते हैं
सदियाँ बीती मैं देह
की दहलीज के मुहाने खड़ा
न जाने कब से अनागत जवाब
की बाट जोहता हूँ.
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