मेज़ पर रखा सफ़ेद हाथी
लिखने की मेज़ पर सफ़ेद हाथी है
उसके हौदे पर उगा है
हरेभरे पत्तों वाला मनीप्लांट
वह तिरछी आँखों से देख रहा
उँगलियों से उगते कविता के कुकरमत्ते
जल्द ही यहाँ उदासी की फ़सल पनपेगी.
गुलाबी फ्रॉक पहने एक लड़की टहलती चली आती
है
रोज़ाना मेरी बोसीदा स्मृति के आसपास
मैं उसका नाम लिए बिना
पूरी शिद्दत से उसे पुकारता हूँ
वह देखते ही देखते तब्दील हो जाती है
किताब के पन्नों के बीच रखे बुकमार्क में.
मेरे इर्दगिर्द न जाने क्या क्या है
प्यार की दीगर स्मृति जैसा कुछ
कभी किसी उदास उचाट दिन
कागज पर खींची बेतरतीब लकीरों का ज़खीरा
ख़ुद को याद दिलाते रहने के लिए
कूटभाषा में यहाँ वहां दर्ज़ चंद हिदायतें.
कोई समझा रहा
मेज पर हाथी पर सवार मनीप्लांट नहीं
लकी बैम्बू सजाओ या
जेड प्लांट या शमी का पौधा लगा लो
या घोड़े के नाल के आकार वाले पेपरवेट के नीचे
अपना मुकद्दर दबा कर
रख लो.
लेपटॉप के भीतर रखे पन्ने
भूल चुके हैं हवा में फड़फड़ाना
उसमें सहेज कर रखी किताबें
कब करप्ट हो जाएँ,पता नहीं
मेज पर रखा सफ़ेद हाथी बिना हिलेडुले
शरारती बच्चे सा हौले से हंसता है.
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