छुट्टियों में घर आए बेटे
बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आमद वे आते हैं तो जंगल में मंगल हो जाता है घर भर में भर जाती है लाड़ पगी गंध । बेटे आते हैं तो घर हॉस्टल बन जाता है करीने से सजी चीजें हो जाती हैं तितर-बितर दीवार पर टंगी बच्चों के दादा-दादी की तस्वीर खुद-ब-खुद ज़रा तिरछी-सी हो लेती है लेकिन ताज्जुब की बात यह हमेशा उदास दिखने वाले पूर्वज फ्रेम जड़ी तस्वीर में बड़ी अदा से मुस्कराते हैं। बेटे घर आते ही जल्द ही इस तरह सो जाते हैं जैसे बरसों से उन्हें चुल्लू भर नींद की तलाश रही जैसे उन्हें अन्यत्र सोने लायक अंधेरा हाथ न लगा जैसे नेह भरी मम्मी इर्द-गिर्द है तो चादर तान के सो रहो जैसे बड़े बाप का बेटा होने का भावार्थ पता लगा लगता है बेटे घर पर्व में शामिल होने नहीं शायद सिर्फ सोने को ही आते हैं। बेटे चाहे जितने बड़े हो जाएं अपनी मम्मी से एक हाथ ऊपर बाइक पर फर्राटा भरते फरर-फरर इंग्लिश बोलते बड़ी-बड़ी देश-दुनिया की बात मिलाते ...