फिसलता वक्त



 

एक-एक कर छूटती जा रही

मनपसंद आदत, शानदार शगल, दिलफ़रेब लत

जीवन में गहरे तक समायी अराजकता

जब तब उदासी ओढ़ लेने का हुनर और

कहीं पर कभी भी बेसुध नींद में उतर जाना

मानो मन ने भुला दिया अरसा हुआ।

 

उम्र फिसल रही है हाथ से धीरे-धीरे..

बहुत दिनों तक हर फ़िक्र को

बेहद लापरवाही से धुंए में उड़ाया

मन बेवजह मुदित हुआ तो

नुक्कड़ वाले हलवाई के यहाँ जा जीम आये

दौने में धर दो चार इमरती

देर तक पानी न पिया कि

जीभ पर टिका स्वाद तत्क्षण गुम न जाये।

 

ढेर सारी हिदायत तमाम परहेज

हर सांस के साथ तरह-तरह की नत्थी शर्तें

जिन्दा बने रहने को बार-बार करना हो

प्राणांत का फुलड्रेस रिहर्सल

देह से गमन ऐसा जैसे अमरत्व का कोई स्वांग.

मरना जीने से भी जटिल हुआ मानो।

 

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