रेहन पर बीमार बूढ़ा
एक बीमार बूढ़े के
दोनों पैर बंधे हैं अस्पताल के पलंग से
वह इलाज़ का बिल
चुकाए बिना कहीं देह से फ़रार न हो जाये
हाथ उसके आज़ाद हैं
फिर भी
रीते हाथों को गुस्से
में वह जितना चाहे उछाल ले
मुंह से निकलती आवाज़
एकदम निरापद है
वह तटस्थता के
दरम्यान सिर्फ गिडगिडाता है.
वारिसों ने जीते जी
उसे रख दिया है रेहन
मूल चुके तो वह
मुक्त हो
ब्याज़ न पटा पाए तो भी
क्या
वैश्विक वायरस के
ख़िलाफ़
शोधार्थी उसे बना लेना चाहते हैं
गिनीपिग का जिंदा
विकल्प.
उम्रदराज आदमी
घर-परिवार के लिए
फालतू सामान भले ही
हो
उसके गुर्दे ,लीवर विभिन्न
अंग प्रत्यंग बेशकीमती हैं
मरने को छोड़ दिया
गया आदमी चतुर कारोबारियों के लिए
जिंदा रहने की जिद
पर अडिग बंदे के मुकाबले
हर हाल में बेहतरीन
है.
अस्पताल के पलंग से
बंधा लाचार बूढ़ा
हमारे समय की
सम्वेदनशील मिसाल है
वह जब कभी यहाँ से
आज़ाद होगा
तब भी आखिर कहाँ चला
जायेगा
घूम-घूम कर करेगा
दर्द का पुनर्पाठ
ऐसे उबाऊ वृतांत को
आजकल कौन सुनता है.
तस्वीर में बीमार
बूढ़े के चेहरे को
जानबूझ कर कर दिया
गया धूमिल
प्रत्येक चेहरा बहुत
मिलता -जुलता होता है
और सच इसके सापेक्ष बड़ा
हौलनाक
धुंधला दिया है चेहरा
यह सोच
लोग भयभीत न हो जाएँ
अपना अक्स देख कर.
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