बेटे के महानगर में
कोई धरती, कोई आसमान नहीं
सिर्फ बॉलकनी है, जहाँ से दिखती हैं
यहाँ-वहां सरकती बौनों की कतार
दर्पण से विमुख, आपको हक है
मानते रहो खुद को विशालकाय गुलीवर.
बेटे के महानगर में
बहुत कुछ स्वचालित है
मौसम के मिज़ाज से लेकर
प्रेमपगा नगमा तक सुनाने वाला एलेक्सा है
तरह तरह की बातें
समय रहते याद दिलाने वाले उपकरण हैं
कहीं कोई भूलचूक नहीं, सभी कुछ अचूक.
बेटे के महानगर में
सुकून भरे जिंदादिल घर-बार नहीं
बच्चों की किलकारियों से भरे आंगन नहीं
एक दूसरे को चुपके-चुपके निहारती
लालसा भरी अलमस्त सरगोशियाँ नहीं
हाउसिंग लोन की ईएमआई का गुणा-भाग है.
बेटे के महानगर में
राजधानी के बगलगीर होने का
पराई हल्दी की गाँठ पा
पंसारी बन बैठने का बहुरुपियापन है
वीकेंड पर छीजती जिन्दगी रिचार्ज करने को
मसालेदार पानी-पूरी गटकने या
ठण्डी-ठार बियर पीने की बेमिसाल ऐय्याशी है.
बेटे के महानगर में
फोन या लैपटॉप में ऊँगलियां फिराते ही
हुक्म बजा लाने वाले जिन्न मौजूद हैं
वे कभी किसी बात पर सॉरी नहीं उच्चारते
थैंक्यू कहे जाने की उम्मीद नहीं करते
अपने काम से काम रखते हैं.
बेटे के महानगर का
कोई मोहनजोदड़ो या हड़प्पा नहीं
सिर्फ सख्त खुरदरी बंजर जमीन है
जहाँ चीटियों तक ने अरसा हुआ आत्महत्या कर ली
तितलियाँ ने मकरंद की आस स्थगित की
खुशबु और स्वाद बोतलबंद हुए.
बेटे के महानगर में
उजाला खिडकियों में लगे कांच के पीछे रहता है
अँधेरा स्वेच्छाचारी है
उसके होने या न होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता
अलादीन का चिराग नदारद हैं
उआज्ञाकारी जिन्न ही जिन्न हैं चारों ओर.
बेटे के महानगर में
कार्यकुशल रोबोट ही रोबोट हैं
शिनाख्त हरदम गले में झूलती है
विविध पासवर्ड समय-असमय गुम हो लेते हैं
उसका नाम वर्तमान की तरह ऑब्सलीट हुआ
जिसे बताता वह बेवजह शरमाता है.
बेटे के महानगर में
मेरा बेटा वहां नहीं रहता
डाटा से लबरेज़ मैमोरी कार्ड रहता है
चाहे –अनचाहे
उसे खंगालने हमें बार-बार
उसके पास प्राय: आना जाना होता है.
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