आज अलसभोर
कपड़े सुखाने वाली प्लास्टिक की डोर पर
एकाकी चिड़िया चहचहा रही
वह वाकई चहचहा रही या
पुकारती अपनी बांधवी को , कौन जाने
दिन की शुरुआत का यह अप्रत्याशित तरीका है.
आज का बिना खुला अखबार
दरवाजे पर पड़ा बेवजह
फड़फड़ाता है
उसके अंदरूनी पेजों से
रिस रही है रह रह कर
गिद्धों के महाभोज
की खबर
मुखपृष्ठ पर
स्वादिष्ट स्वास्थ्यवर्धक
चाॅकलेट के आमद की महत्वपूर्ण
सूचना है.
उसके हाशिये पर
यकीनन छपी होंगी
उचित इलाज न मिलने के
चलते मरे आदमी
बिलखते बच्चों और विलाप
करती औरतों की तस्वीरें
गैस और प्राणरक्षक
दवा के लिए
दर दर भटकते भाग्यविहीन
लोगों की तकलीफों का
सिंगल कॉलम व्यंग्यात्मक
विवरण भी होगा.
अखबार उठाते -खोलते मन
डरता है
सुनाई देती है इसमें
से
मंत्रोच्चार के साथ
कूच करती हुतामाओं की
कूटनीतिक पदचाप
इस क्रूर और जटिल समय
में
जीना भी हुआ लगभग हास्यास्पद.
बरामदे में रखी
सरकंडे की कुर्सी पर बैठ
रोज सुबह सवेरे
ख्याल आता है
बिना कुछ लिखे पढ़े
महज़ अटपटे अनुमानों,
भदेस चुटकुलों और
अनमोल वचनों के सहारे
जितना वक्त निरापद
गुजर जाये
चैन की सांस लेते, वही बेहतर.
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