कविता के लोकतंत्र में
राजा खुलेआम निकलता है
मौलिक नँगई का राजदण्ड लिए
नंगे को नंगा कहने वाला बच्चा
पोर्नोग्राफी पर निगाह गड़ाये है
ज़रा -सी फुरसत मिले
तो दोबारा सच बोले.
बरसों बरस की डेली पैसेंजरी के दौरान रची गई अनगढ़ कविताएँ . ये कवितायें कम मन में दर्ज हो गई इबारत अधिक हैं . जैसे कोई बिगड़ैल बच्चा दीवार पर कुछ भी लिख डाले .
लड़कियों के खवाब कोई कहीं घुमाती होगी सलाई रंगीन ऊन के गोले बेआवाज़ खुलते होंगे मरियल धूप में बैठी बुनती होगी एक नया इंद्रधनुष. लड़कियां कितनी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें