कोलाहल और मौन
पता नहीं क्यों
मौन में बड़ा कोलाहल होता है
और कोलाहल का कोई अर्थ नहीं होता
मौन भी अक्सर
मौन कहाँ रह पाता है
बन जाता है एक खूंटी
जिस पर जो चाहे जब
टांग दे अपनी भड़ास .
लेकिन कोलाहल और मौन के बीच
बहुत कुछ बचा रहता
बहुत अर्थवान
वहां रहती हैं तनी हुई भृकुटियां
शब्दों का अतिक्रमण करता क्रोध
भिंची हुई मुट्ठियाँ
बदलाव के सपने
इन्हें एक बार खोल कर देखो .
कोलाहल और मौन के मध्य
जीवन हमेशा मुस्तैद रहता है
वहां से निकल कर अक्सर कायरता
दुर्गम भाषाई अरण्यों की
वाचाल निस्तब्धता में
मुहँ छिपा लेती है.
कोलाहल हो या मौन
इनसे कभी कोई कविता जन्म नहीं लेती .
मौन में बड़ा कोलाहल होता है
और कोलाहल का कोई अर्थ नहीं होता
मौन भी अक्सर
मौन कहाँ रह पाता है
बन जाता है एक खूंटी
जिस पर जो चाहे जब
टांग दे अपनी भड़ास .
लेकिन कोलाहल और मौन के बीच
बहुत कुछ बचा रहता
बहुत अर्थवान
वहां रहती हैं तनी हुई भृकुटियां
शब्दों का अतिक्रमण करता क्रोध
भिंची हुई मुट्ठियाँ
बदलाव के सपने
इन्हें एक बार खोल कर देखो .
कोलाहल और मौन के मध्य
जीवन हमेशा मुस्तैद रहता है
वहां से निकल कर अक्सर कायरता
दुर्गम भाषाई अरण्यों की
वाचाल निस्तब्धता में
मुहँ छिपा लेती है.
कोलाहल हो या मौन
इनसे कभी कोई कविता जन्म नहीं लेती .
"कोलाहल हो या मौन
जवाब देंहटाएंइनसे कभी कोई कविता जन्म नहीं लेती ."badhiya kavita sir.