रामखिलावन जीना सीख रहा है
तवा चूल्हे पर था
रामखिलावन की तर हथेलियों पर
रोटी ले रही थी आकार
तभी सीधे गाँव से खबर चली आई
बड़के चाचा नहीं रहे .
अब वह क्या करे
रोटी बनाये
कुछ खाए या
फिर शोक मनाये .
रामखिलावन अपने गांव से इतनी दूर
अपनों को रुलाकर
उनकी भूख की खातिर ही तो आया है
वह यहाँ गुलछर्रे उड़ाने
रोने बिसूरने नहीं आया .
वह कमाएगा तभी तो
कुछ खायेगा
घर गांव के लिए
उसमें से कुछ बचा पायेगा .
रामखिलावन गांव छोड़ चला तो आया
पर उससे गांव छूटा कहाँ
वह यहाँ सुदूर शहर में आ धमकता है
खूबसूरत यादें लिए
कभी आँखों के लिए पानी
तो कभी घर लौट आने की
मनुहार लिए
गांव से कभी सिसकियाँ आती हैं
तो कभी हौंसला
और कभी कभी दुखदायी ख़बरें भी .
रामखिलावन हठयोगी है
वह बिना हथियार के भी
लड़ना सीख चुका है .
अपना काम करना कभी नहीं भूलता
वह दुःख सुख की
परंपरागत परिभाषा से
बाहर निकल आया है
पर निष्ठुर नहीं हुआ है वह .
रामखिलावन के भीतर
अभी भी उसका गांव बसा है .
जिसकी याद में वह सुबकता भी है
मन ही मन रीझता भी है
शोकाकुल भी होता है
वहां की हर अनहोनी पर .
पर वह अपने काम के समय
सिर्फ काम करता है .
बाकी बचे खुचे समय में वह वही
गांव वाला रामखिलावन होता है
जिसे बड़के चाचा का यूं चले जाना
बहुत हिला देता है
पर उसके हाथ इस खबर को पाकर भी
थमते नहीं ,रोटी बनाते हैं
वह रोटियों का मर्म जानता है
उन्हें खाए बिना तो
ठीक से रो पाना भी मुश्किल है .
रामखिलावन बहुत उदास है
पर वह जुबानी मातमपुर्सी के लिए
दौड़ा दौड़ा गांव नहीं जायेगा .
वह अब शहर में रह कर
सलीके से जीना सीख रहा है .
रामखिलावन की तर हथेलियों पर
रोटी ले रही थी आकार
तभी सीधे गाँव से खबर चली आई
बड़के चाचा नहीं रहे .
अब वह क्या करे
रोटी बनाये
कुछ खाए या
फिर शोक मनाये .
रामखिलावन अपने गांव से इतनी दूर
अपनों को रुलाकर
उनकी भूख की खातिर ही तो आया है
वह यहाँ गुलछर्रे उड़ाने
रोने बिसूरने नहीं आया .
वह कमाएगा तभी तो
कुछ खायेगा
घर गांव के लिए
उसमें से कुछ बचा पायेगा .
रामखिलावन गांव छोड़ चला तो आया
पर उससे गांव छूटा कहाँ
वह यहाँ सुदूर शहर में आ धमकता है
खूबसूरत यादें लिए
कभी आँखों के लिए पानी
तो कभी घर लौट आने की
मनुहार लिए
गांव से कभी सिसकियाँ आती हैं
तो कभी हौंसला
और कभी कभी दुखदायी ख़बरें भी .
रामखिलावन हठयोगी है
वह बिना हथियार के भी
लड़ना सीख चुका है .
अपना काम करना कभी नहीं भूलता
वह दुःख सुख की
परंपरागत परिभाषा से
बाहर निकल आया है
पर निष्ठुर नहीं हुआ है वह .
रामखिलावन के भीतर
अभी भी उसका गांव बसा है .
जिसकी याद में वह सुबकता भी है
मन ही मन रीझता भी है
शोकाकुल भी होता है
वहां की हर अनहोनी पर .
पर वह अपने काम के समय
सिर्फ काम करता है .
बाकी बचे खुचे समय में वह वही
गांव वाला रामखिलावन होता है
जिसे बड़के चाचा का यूं चले जाना
बहुत हिला देता है
पर उसके हाथ इस खबर को पाकर भी
थमते नहीं ,रोटी बनाते हैं
वह रोटियों का मर्म जानता है
उन्हें खाए बिना तो
ठीक से रो पाना भी मुश्किल है .
रामखिलावन बहुत उदास है
पर वह जुबानी मातमपुर्सी के लिए
दौड़ा दौड़ा गांव नहीं जायेगा .
वह अब शहर में रह कर
सलीके से जीना सीख रहा है .
पर वह जुबानी मातमपुर्सी के लिए
जवाब देंहटाएंदौड़ा दौड़ा गांव नहीं जायेगा .
वह अब शहर में रह कर
सलीके से जीना सीख रहा है .
.............बहुत उम्दा ..!!!
सलीके से भला
जवाब देंहटाएंकौन कब अब
जी पाया है
आकर शहर में
यह भी तो
आपके रामखिलावन
ने ही प्रश्न उठाया है।