समय के होने का मतलब
समय कभी नहीं बीतता
वह निरंतर मौजूद रहता है
अपनी प्रखर अभिव्यक्ति के साथ
अतीत से भविष्य तक
जहाँ देखो वहां वह है
बदलते मौसमों
बदलते चेहरों और
उनकी बदलती भावभंगिमाओं को
मुँह चिढाता .
कोई चाहे या न चाहे
समय कभी असमय नहीं होता .
समय एक निरंकुश शासक भी है
बेहद संवेदनशील दोस्त भी
बात बात पर मुहँ बिसूर लेने वाला
हठी बच्चा भी
मन को बेचैन कर देने वाली
कहीं दूर से आती
किसी मलंग की वाणी भी .
समय अपनी उपस्थिति के लिए
किसी का मोहताज नहीं
न किसी सत्ता का
न किसी दैवीय अनुकम्पा का
न किसी नक्षत्रीय व्यवस्था का
न घड़ी की यंत्रवत सरकती सुइयों का या
कलेंडर पर बदलती तारीखों का .
समय का अपना निजाम है
निजी संविधान
अपनी न्यायप्रणाली
वैयक्तिक संवेदनशीलता
स्वैच्छिक आकार
आराजक गतिशीलता
नितांत अपरिभाषित मौन
एकदम अपरिचित संगीत .
समय है इसीलिए सब कुछ है
गहरे अवसाद के भीतर धीरे धीरे बजती
आनंद की जलतरंग है
किसी घोंसले में आर्तनाद करते
भूखे बच्चों के लिए
उनकी माँ की चोंच में
दबा चुग्गा है
और उसके पंखों में इतनी ऊर्जा
जो अपने बच्चों के पास आने जाने में
कभी चुकती नहीं .
समय तटस्थ तो है
पर इतना निर्लज्ज नहीं
कि आततायियों के साथ गलबहियां करे
किसी की भूख में चटखारे ले
किसी की उम्मीद के आखिरी दिए को
अपनी फूंक से बुझा कर अट्टहास करे .
समय किसी को नहीं बख्शता
वह दबे पाँव चलता है.
सच भी यही है
समय हमेशा उनके साथ होता है
जो उसके होने का मतलब
ठीक से समझते हैं .
वह निरंतर मौजूद रहता है
अपनी प्रखर अभिव्यक्ति के साथ
अतीत से भविष्य तक
जहाँ देखो वहां वह है
बदलते मौसमों
बदलते चेहरों और
उनकी बदलती भावभंगिमाओं को
मुँह चिढाता .
कोई चाहे या न चाहे
समय कभी असमय नहीं होता .
समय एक निरंकुश शासक भी है
बेहद संवेदनशील दोस्त भी
बात बात पर मुहँ बिसूर लेने वाला
हठी बच्चा भी
मन को बेचैन कर देने वाली
कहीं दूर से आती
किसी मलंग की वाणी भी .
समय अपनी उपस्थिति के लिए
किसी का मोहताज नहीं
न किसी सत्ता का
न किसी दैवीय अनुकम्पा का
न किसी नक्षत्रीय व्यवस्था का
न घड़ी की यंत्रवत सरकती सुइयों का या
कलेंडर पर बदलती तारीखों का .
समय का अपना निजाम है
निजी संविधान
अपनी न्यायप्रणाली
वैयक्तिक संवेदनशीलता
स्वैच्छिक आकार
आराजक गतिशीलता
नितांत अपरिभाषित मौन
एकदम अपरिचित संगीत .
समय है इसीलिए सब कुछ है
गहरे अवसाद के भीतर धीरे धीरे बजती
आनंद की जलतरंग है
किसी घोंसले में आर्तनाद करते
भूखे बच्चों के लिए
उनकी माँ की चोंच में
दबा चुग्गा है
और उसके पंखों में इतनी ऊर्जा
जो अपने बच्चों के पास आने जाने में
कभी चुकती नहीं .
समय तटस्थ तो है
पर इतना निर्लज्ज नहीं
कि आततायियों के साथ गलबहियां करे
किसी की भूख में चटखारे ले
किसी की उम्मीद के आखिरी दिए को
अपनी फूंक से बुझा कर अट्टहास करे .
समय किसी को नहीं बख्शता
वह दबे पाँव चलता है.
सच भी यही है
समय हमेशा उनके साथ होता है
जो उसके होने का मतलब
ठीक से समझते हैं .
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