पुस्तक मेले में किताबें
पुस्तक मेले में
शेल्फ पर रखी किताबें
शेल्फ पर रखी किताबें
टुकुर टुकुर झांकती रहीं
इस आस में कि कोई तो
आये
जो उन्हें अपने साथ
ले जाये
अपने हाथों में थामे
पढ़े मनोयोग
से
सजा ले अपनी दिल की
गहराई में .
गहराई में .
किताबें खुली हवा
में
साँस लेना चाहती थीं
अपने भीतर की खुशबू
को
फैलाना चाहती हैं
पूरी कायनात में .
अँधेरे गोदामों में
उनका दम घुटता है .
बाज़ार में सजी
किताबें
बड़ी गुमसुम थीं
उन्हें पता था
यह बाज़ार ही है उनका
सबसे बड़ा दुश्मन
आज नहीं तो कल
यह उन्हें समूचा
निगल जायेगा .
किताबें निहत्थी हैं
जिन्दा रहने की
जद्दोजेहद में
नितांत एकाकी
इनको अपनी लड़ाई भी
ठीक से लड़नी नहीं
आती
इनको कौन बचायेगा ?
समय ,सीलन और दीमक
किसी को नहीं बख्शते
.
किताबें मानस संतति
हैं
उन उर्जावान
रचनाकारों की
जो कभी निकले तो थे
शब्दों की मशाल लिए
इतिहास की कालिमा
मिटाने
पर चले गए वापस
अपनी –अपनी महत्वाकांक्षाओं
के
वर्षा वनों मे धूनी रमाने
जहाँ की निस्तब्धता
को बेध पाना
बेचारी किताबों के
लिए मुमकिन नहीं .
किताबें धीरे धीरे
किताबघरों में
मर जाएँगी एक एक
करके .
इनकी असामयिक मौत पर
शोकाकुल होने की
फिलवक्त किसी को फुरसत
नहीं .
ध्यान रहे यह सिर्फ
किताबों का मामला
नहीं है
बाजार के बाजीगर
सबसे पहले मिटायेंगे
धरती से किताबों के
नामोनिशान
इसके बाद होंगे हम
सभी
उनके निशाने पर .
अपनी जड़ों से उखड़े
कद्दावर दरख्तों को भी
किसी चापलूस की मेज
किसी दरबारी की
कुर्सी
और किसी बेपेंदी के
लोटे का
मजबूत आधार बनने में
समय ही कितना लगता
है
जरुरी किताब को कोई भी भला कैसे भूलेगा
जवाब देंहटाएंनौकरी दिलाती, बिठाती कुर्सी पर किताबें
किताब लाती है ताब, सिखाती सही बर्ताव ।