चाय की दुकान और सुबह




नुक्कड़ वाली चाय की दुकान में
सुबह मुहँ अँधेरे ही आ जाती है
जब एक बीमार बूढ़ा
वहां चला आता है
अपने पाँव घसीटता .
एक ठंडी रात में से गुजर कर
जिन्दा बच निकालना
उसके लिए नए दिन की
सबसे बड़ी खबर होती है
हालांकि  इस खबर को  आज तक
किसी अखबार ने  नहीं छापा .

बीमार बूढ़ा रोज बताता है चाय वाले को
भीषण मौसम से लड़ने की
कामयाब रणनीति
और अपने को पेश करता है
बतौर गवाह .
पर दुकानदार हमेशा उसकी
हर बात को नज़रंदाज़ कर देता है .
उसके लिए तो वह बूढ़ा
बस एक अलस्सुबह जगाने वाला
किसी घड़ी का अलार्म है .

बूढ़ा आया है
तो सुबह भी आती ही  होगी
अपनी पूरी आनबान शान के साथ
अरसे से सुबह ऐसे ही आती है
पर जिस दिन बूढ़ा न आया
तब क्या होगा ?
क्या उस दिन सुबह
अपने आगमन को स्थगित कर देगी ?

चाय वाले के लिए
यह धंधे का समय है
इस वक्त वह
सिर्फ अपने काम से काम रखता है
तमाम फ़िज़ूल के सवालों को
वह रात के लिए संभाल कर रख देता है .
जब रात आएगी तब देखा जायेगा .

बीमार बूढ़ा कह रहा है चाय वाले से
भाई आज दूध वाली  नहीं
नीम्बू की  चाय पिलाओ न !
चाय वाला अचकचा कर देखता है
उस बूढ़े को
वह समझ चुका है
कि ठन्डे दिन बीतने को हैं
इस साल भी इस  बूढ़े ने
ठण्ड को दे दी है निर्णायक मात .

अब यह खबर किसी अखबार में छपे बिना
सारी दुनिया को पता लग जायेगी
कि चाय की दुकान पर
अब सुबह जरा जल्दी आ जायेगी .

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