शेर के पंजे का छापा और मुहर
पेड़ के नीचे बैठे –
बैठे किसी ने
अचानक मुट्ठी को
बाँधा
उसे छाप दिया गीली
मिट्टी पर
बब्बर शेर का पंजा
उभरा
पूरा इलाका गूँज उठा
वनराज की दहाड़ से. .
शहर के किसी दफ्तर
में
हाकिम ने हुक्मनामे
पर
छोटी –सी चिड़िया
बैठाई
मुहर की मुडेर पर
सैकड़ों किसानों के
पैरों तले से
सरक गई उनकी जमीन और
मुस्तकबिल.
जंगल में अब शेर
नहीं
उनका आधा अधूरा खौफ
रहता है
शहरों में रहते हैं
कागजी बघेरे
वह दहाड़ते नहीं सिर्फ
खीसे निपोरते हैं
ठीक वैसे जैसे
चिड़िया दबोच कर
खिलखिलाता है कोई बहेलिया
..
जंगल उजड़ कर बने शहर
शेर कर गए पलायन
अब उनकी आभासी
उपस्थिति है
बस बंद मुट्ठी के
छापे में
सरकारी फाइलों में
नत्थी हैं
तमाम गोलमटोल मंसूबे.
पैरों तले की जमीन
की
होनी है बड़ी बारीकी
से पैमाइश
नक्शानवीस आयेंगे
रंगबिरंगी पेंसिल कागज
लिए
सभ्रांत इमारतों और
सपनों का
ब्लूप्रिंट बनाने की
तकनीक लिए.
.
कोई बता रहा है
पुरजोर आवाज़ में
बंद मुट्ठियों में से
कोई शेर -वेर नहीं
निकलता
उसके भीतर पलते हैं शेखचिल्ली
के ख्वाब.
फर्जी पदचिन्हों के
जरिये
सिर्फ मुगालते के
जंगल पनपते हैं.. .
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