सपना देखते हुए
उस दिन भी वही हुआ
जो अमूमन रोज होता था
मुझे बस में आखिरकार मिल गई
खिड़की के पास वाली सीट
मैं उस पर पसर गया
और आँखें मूँद कर
तुरंत ही देखने लगा
कोई ऊलजलूल सपना.
उस वक्त सपने में मैंने क्या देखा
यह तो ठीक से याद नहीं
पर यह मुझे अच्छी तरह मालूम है
अपने सपने के भीतर
मैं बड़े एहतियात से मुस्कराया था
कि मेरी मुस्कान का कोई सुराग
किसी को बाहर न मिलने पाए
पर ऐसा हो न सका
और बगल की सीट पर बैठी
एक छोटी –सी बच्ची ने भांप लिया था उसे
और वह खिलखिलाई थी.
इस सलीके से
कि उसके हँसने को
केवल मैं ही सुन पाया था नींद में
और हो उठा था बेतरह असहज
जैसे कोई देख ले किसी को
उसकी निजता के बीच
दर्पण के सामने खड़े होकर
तरह तरह की मुद्राएँ बनाता.
बस चल दी, चलती रही
बच्ची कनखियों से मुझे देखती रही
और एक शब्द भी उच्चारित किये बिना
मुझसे कहती रही निरंतर
अंकल, देखो न वही सपना
जिसे देखते हुए आप
इतने खुश थे.
मैं उस नन्ही सी बच्ची को कैसे बताऊँ
सपनों की अपनी परिधि होती है
उसके पार निकल जाने पर
वह धुआं धुआं हो जाते हैं
किसी छलावे की तरह
और फिर कभी लौट कर नहीं आते.
मुझे बस में आखिरकार मिल गई
खिड़की के पास वाली सीट
मैं उस पर पसर गया
और आँखें मूँद कर
तुरंत ही देखने लगा
कोई ऊलजलूल सपना.
उस वक्त सपने में मैंने क्या देखा
यह तो ठीक से याद नहीं
पर यह मुझे अच्छी तरह मालूम है
अपने सपने के भीतर
मैं बड़े एहतियात से मुस्कराया था
कि मेरी मुस्कान का कोई सुराग
किसी को बाहर न मिलने पाए
पर ऐसा हो न सका
और बगल की सीट पर बैठी
एक छोटी –सी बच्ची ने भांप लिया था उसे
और वह खिलखिलाई थी.
इस सलीके से
कि उसके हँसने को
केवल मैं ही सुन पाया था नींद में
और हो उठा था बेतरह असहज
जैसे कोई देख ले किसी को
उसकी निजता के बीच
दर्पण के सामने खड़े होकर
तरह तरह की मुद्राएँ बनाता.
बस चल दी, चलती रही
बच्ची कनखियों से मुझे देखती रही
और एक शब्द भी उच्चारित किये बिना
मुझसे कहती रही निरंतर
अंकल, देखो न वही सपना
जिसे देखते हुए आप
इतने खुश थे.
मैं उस नन्ही सी बच्ची को कैसे बताऊँ
सपनों की अपनी परिधि होती है
उसके पार निकल जाने पर
वह धुआं धुआं हो जाते हैं
किसी छलावे की तरह
और फिर कभी लौट कर नहीं आते.
पर मेरी बच्ची यह तो बता
तुझे किसने सिखाया
सपनों की कूटभाषा को यूं पढ़ लेना ?
सपनों की कूटभाषा को यूं पढ़ लेना ?
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