यही वक्त है
छुपम छुपाई
इन बच्चों के मन में
नहीं है नवाब बनने की ख्वाहिश
इनके सपने निहायत आत्मघाती हैं.
उनकी जिद है कि
वे तो ऐसे ही खेलेंगे उम्र भर
बच्चे बड़े होने की जल्दी में नहीं हैं.
अधिकांश बच्चे जा चुके हैं
खेल की दुनिया से बाहर
इनके मन में राजे रजवाड़े सामंत
अहलकार, भांड, विदूषक बनने का
एक ऐसा ख्वाब है
जो पलक झपकने या नींद खुलने पर
कभी टूटने वाला नहीं है
बच्चे बड़े होने की जल्दी में हैं.
बच्चो ! इतना समझ लो
यदि यूं ही पढोगे लिखोगे
तब कुछ न बन पाओगे
न नवाब न कुछ और.
यदि ऐसे ही खेलते रहोगे
छुपम छुपाई
तुम एक दिन अकेले पड़ जाओगे
जिंदगी की दौड़ में
कोई तुम्हें ढूँढने न आएगा.
बच्चो ! खेल ही खेल में
कोई है आतताई जो
तुम्हारे बचपन पर घात लगाये बैठा है
खुद मत छुपो, इन्हें ढूंढो
ठीक से पढों
और इन लोगों की मक्कारी लिखो.
यह सलीके से खेलने
ढंग से पढ़ने लिखने
लिजलिजे ख्वाबों को
कूड़ेदान में फेंक कर
अपने समय को
ठीक से समझने का
सही वक्त है.
इन बच्चों के मन में
नहीं है नवाब बनने की ख्वाहिश
इनके सपने निहायत आत्मघाती हैं.
उनकी जिद है कि
वे तो ऐसे ही खेलेंगे उम्र भर
बच्चे बड़े होने की जल्दी में नहीं हैं.
अधिकांश बच्चे जा चुके हैं
खेल की दुनिया से बाहर
इनके मन में राजे रजवाड़े सामंत
अहलकार, भांड, विदूषक बनने का
एक ऐसा ख्वाब है
जो पलक झपकने या नींद खुलने पर
कभी टूटने वाला नहीं है
बच्चे बड़े होने की जल्दी में हैं.
बच्चो ! इतना समझ लो
यदि यूं ही पढोगे लिखोगे
तब कुछ न बन पाओगे
न नवाब न कुछ और.
यदि ऐसे ही खेलते रहोगे
छुपम छुपाई
तुम एक दिन अकेले पड़ जाओगे
जिंदगी की दौड़ में
कोई तुम्हें ढूँढने न आएगा.
बच्चो ! खेल ही खेल में
कोई है आतताई जो
तुम्हारे बचपन पर घात लगाये बैठा है
खुद मत छुपो, इन्हें ढूंढो
ठीक से पढों
और इन लोगों की मक्कारी लिखो.
यह सलीके से खेलने
ढंग से पढ़ने लिखने
लिजलिजे ख्वाबों को
कूड़ेदान में फेंक कर
अपने समय को
ठीक से समझने का
सही वक्त है.
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