बरसों बरस की डेली पैसेंजरी के दौरान रची गई अनगढ़ कविताएँ . ये कवितायें कम मन में दर्ज हो गई इबारत अधिक हैं . जैसे कोई बिगड़ैल बच्चा दीवार पर कुछ भी लिख डाले .
शुक्रवार, 30 अगस्त 2013
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मोची राम
लड़कियों के खवाब कोई कहीं घुमाती होगी सलाई रंगीन ऊन के गोले बेआवाज़ खुलते होंगे मरियल धूप में बैठी बुनती होगी एक नया इंद्रधनुष. लड़कियां कितनी...
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सुबह सरकंडे की कुर्सी पर बैठ कर वह एक एक वनस्पति को निरखता माली के आने की बड़ी बेसब्री से बाट जोहता वह मौसम से अधिक माली क...
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उसने लड़कों की तरह अपनी पेंट की दोनों जेबों में हथेलियों को छुपाया. इससे पहले अपने लहराते बालों को करीने से इस तरह सरकाया वह कुछ...
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