मंगलवार, 5 सितंबर 2017

मुझे पता है


मुझे पता है कि आसमान का रंग नीला है
नीलेपन का यह कौन सा शेड है
नहीं मालूम
किसी बात के कुछ-कुछ पता होने से
कुछ नहीं होता लेकिन
आसमान फिर भी वही रहता है
बेनामी परिंदों और सपनों की उन्मुक्त सैरगाह.

मुझे नहीं पता कि जो परिंदा
झाड़ियों के झुरमुट में चहकता है
उसके  इस तरह से संगीत में उबडूब करने की
असल वजह क्या है
रागात्मकता का कोई नाम नहीं
फिर भी झाड़ी की हरीतिमा में
कुछ तो है
जो सन्तूर के  सौ तारों पर बजता है.

वह अलस्सुबह घर से निकलती है
तेज डग भरते हडबडाई सी
होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाती
वह कोई प्रार्थना करती है या
वक्त की ब्रेल लिपि को
अधरों से बांचती है ,नहीं पता
उसकी अनाम छवि  फिर भी
मेरे अंतस की पोशीदा गहराई में
गुद गयी है टैटू बन कर.

बहुत सी बातें हैं
जिनको मैं थोड़ा बहुत जानता हूँ
इतना कि वह एकदम न जानने जैसा ही है
अनुमानों की खूँटी पर
मैंने टांग ली हैं अनेक दंतकथायें
जिनके सच होने या न होने के बीच
सिर्फ एक औगढ़ अपनापन है.

तर्क से अंगुल भर नीचे
वितर्क के पाताल के बीचों बीच
तमाम अटकलों को दरकिनार करती
निशब्द बहती जीवन की नदी है
जो अपनी ख़ामोशी में भी
एक के बाद एक मुकम्मल कविता
स्मृति के हाशिये पर लिखे जाती है.




मोची राम

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