बरसों बरस की डेली पैसेंजरी के दौरान रची गई अनगढ़ कविताएँ . ये कवितायें कम मन में दर्ज हो गई इबारत अधिक हैं . जैसे कोई बिगड़ैल बच्चा दीवार पर कुछ भी लिख डाले .
शुक्रवार, 30 अगस्त 2013
सोमवार, 19 अगस्त 2013
कभी कभी : एक उदास दिन में लिखी कविताएँ
लाइब्रेरी में बैठ कर किसी एक
किताब को बांचना बड़ा मुश्किल है
कभी कभी शेल्फ में रखी तमाम किताबें
मुझे भी मुझे भी का कोरस गाती हैं .
किताब को बांचना बड़ा मुश्किल है
कभी कभी शेल्फ में रखी तमाम किताबें
मुझे भी मुझे भी का कोरस गाती हैं .
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शेल्फ में रखी किताबों को
मैं बड़ी एहतियात से छूता हूँ
कभी कभी जरा सी लापरवाही से किताबें
बच्चों की तरह मुहँ फूला ल्रेती हैं .
मैं बड़ी एहतियात से छूता हूँ
कभी कभी जरा सी लापरवाही से किताबें
बच्चों की तरह मुहँ फूला ल्रेती हैं .
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कल तक जो थीं मेरे दिल के पास
आज वह रद्दी वाले के तराजू में हैं
कभी कभी किताबों का भी
आदमी -सा हश्र होता है .
आज वह रद्दी वाले के तराजू में हैं
कभी कभी किताबों का भी
आदमी -सा हश्र होता है .
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मैं किताबों को पढ़ता नहीं
उनसे बतियाता हूँ
कभी कभी लोगों को लगता है
मैं उम्र के साठवें पड़ाव पर हूँ .
उनसे बतियाता हूँ
कभी कभी लोगों को लगता है
मैं उम्र के साठवें पड़ाव पर हूँ .
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आतंकवादी से लेकर नेताओं तक की
दाढ़ियों में तिनके ही तिनके हैं
कभी कभी तिनकों से बने घोंसलों में
किंग कोबरा भी रहते हैं .
दाढ़ियों में तिनके ही तिनके हैं
कभी कभी तिनकों से बने घोंसलों में
किंग कोबरा भी रहते हैं .
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मैं हूँ पानी केरा बुदबुदा
अस मानुस की जात
कभी कभी नहीं हमेशा से
सिर्फ काक्रोच ही कालजयी होते हैं .
अस मानुस की जात
कभी कभी नहीं हमेशा से
सिर्फ काक्रोच ही कालजयी होते हैं .
शनिवार, 17 अगस्त 2013
कभी कभी : जो सूझा लिख डाला
मन में सघन उदासी थी
तब मैंने कविता लिखी
कभी कभी कविता
आँसू पोंछने का रुमाल बन जाती है .
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उम्र के बहाव में आदमी
कितना अकेला पड़ जाता है
कभी कभी बिना लड़े ही
वह यूं ही हार जाता है .
सुबह अभी आई ही है
रात का इंतज़ार शुरू हो गया
कभी कभी अँधेरे के लिए
लोग पलकें बिछा देते हैं
तब मैंने कविता लिखी
कभी कभी कविता
आँसू पोंछने का रुमाल बन जाती है .
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मन के अरण्य में
कितना गहन सन्नाटा है
कभी कभी कुछ झींगुर ही
आवाज़ उठाते रह जाते हैं .
कितना गहन सन्नाटा है
कभी कभी कुछ झींगुर ही
आवाज़ उठाते रह जाते हैं .
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सुबह जब आँख खुली
दिन चढ़ आया था
कभी कभी अँधेरे को भी
घर जाने की जल्दी होती है .
दिन चढ़ आया था
कभी कभी अँधेरे को भी
घर जाने की जल्दी होती है .
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उम्र के बहाव में आदमी
कितना अकेला पड़ जाता है
कभी कभी बिना लड़े ही
वह यूं ही हार जाता है .
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सुबह अभी आई ही है
रात का इंतज़ार शुरू हो गया
कभी कभी अँधेरे के लिए
लोग पलकें बिछा देते हैं
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बच्चा अपनी नींद में
हौले से मुस्कराता है
कभी कभी मुस्तकबिल *
कितना खुशगवार लगता है .
*भविष्य
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हौले से मुस्कराता है
कभी कभी मुस्तकबिल *
कितना खुशगवार लगता है .
*भविष्य
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देखते ही देखते
उन्होंने मार डाले तमाम मेमने
कभी कभी बकरियां
बस मिमयाती रह जाती हैं .
उन्होंने मार डाले तमाम मेमने
कभी कभी बकरियां
बस मिमयाती रह जाती हैं .
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वह गहरी नींद में है
होठों पर तिर आई है कडवाहट
कभी कभी तल्ख लमहे
कहाँ तक चले आते हैं .
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जश्न का मौका है
प्लेटों में सजे हैं तमाम मुर्गे
कभी कभी बांग के इंतज़ार में
सुबह आने से कतराती है .
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वह पूछ रहे हैं जनता से
क्या मैं काक्रोच लगता हूँ ?
कभी कभी कुछ सवालों के जवाब
तबाही के मलबे से निकलते हैं .
वह गहरी नींद में है
होठों पर तिर आई है कडवाहट
कभी कभी तल्ख लमहे
कहाँ तक चले आते हैं .
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जश्न का मौका है
प्लेटों में सजे हैं तमाम मुर्गे
कभी कभी बांग के इंतज़ार में
सुबह आने से कतराती है .
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वह पूछ रहे हैं जनता से
क्या मैं काक्रोच लगता हूँ ?
कभी कभी कुछ सवालों के जवाब
तबाही के मलबे से निकलते हैं .
शुक्रवार, 16 अगस्त 2013
कभी कभी : डायरेक्ट दिल से
गुलेल से निकले पत्थर ने
बेध दी चिड़िया की आँख
कभी कभी लक्ष्य बेधने के लिए
अर्जुन नहीं क्रूर होना ही काफी है .
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कुछ लोग नींद में
लगातार सपने बटोरते हैं
कभी कभी ऐसा लगता है
मेरे सपनों की नींद से अदावत है .
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वह कहीं नहीं है सदेह
फिर भी रहती है आसपास
कभी कभी किसी के होने में
देह कब आड़े आती है .
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पिंजरे में बैठा तोता
आदमी की तरह बोलता है
कभी कभी आजाद हवा में वह
कितना बेगाना हो जाता है .
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अब रोता हुआ बच्चा भी
झुनझुनों से नहीं बहलता
कभी कभी बचकानी ख्वाहिशें
कितनी हाईटेक हो जाती है .
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आजकल कोई बच्चा
आसानी से नहीं सोता
कभी कभी उन्हें सुलाने में
लोरियाँ बेअसर हो जाती हैं .
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जश्न का मौका है
नाचने गाने का दस्तूर है
कभी कभी ऐन मौके पर
कोई गीत याद नहीं आता .
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चिता सज चुकी है आत्मीयजन की
पूरी हो चुकी है प्रस्थान की तैयारी
कभी कभी ऐसे मौके पर
गिरता हुआ सेंसेक्स कितना रुलाता है .
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डाक टिकट लगे लिफाफे में
तुम्हें लिखे खत आजतक रखे हैं
कभी कभी कुछ पैगाम
ऐसे ही अफसाने बन जाते हैं .
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आज पता लगा वह कबूतर तो मर गया
जो तुम तक ले जाता था मेरे खत
कभी कभी किसी के साथ
झूठी उम्मीदें भी मर जाती हैं .
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गुरुवार, 15 अगस्त 2013
कभी कभी : अगडम सगड़म दिनीं में
कलम की धमक से
हिल जाती हैं सरकारें
कभी कभी लेखक भी
कैसे कैसे चुटकुले गढ़ लेते हैं .
हिल जाती हैं सरकारें
कभी कभी लेखक भी
कैसे कैसे चुटकुले गढ़ लेते हैं .
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सोशल मीडिया पर उनके ख्याल
बड़े क्रांतिकारी होते हैं
कभी कभी प्रिंट मीडिया में जाकर
यह नए मुखौटे ओढ़ लेते हैं .
बड़े क्रांतिकारी होते हैं
कभी कभी प्रिंट मीडिया में जाकर
यह नए मुखौटे ओढ़ लेते हैं .
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एक रिटायर्ड संपादक
दिन भर बने रहते हैं समाज सुधारक
कभी कभी उनकी हिलती हुई दुम
असलियत की निशानदेही कर जाती है .
दिन भर बने रहते हैं समाज सुधारक
कभी कभी उनकी हिलती हुई दुम
असलियत की निशानदेही कर जाती है .
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चेहरे से टपकती मनहूसियत
वेश भूषा बेढंगी
कभी कभी तुरंत पता चल जाता है
ये बंदा तो कवि है .
वेश भूषा बेढंगी
कभी कभी तुरंत पता चल जाता है
ये बंदा तो कवि है .
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वे रात दिन दुम हिलाते हैं
कोई देख ले तो छुपा लेते हैं
कभी कभी ये पापी पेट
कैसे कैसे खेल सिखा देता है .
कोई देख ले तो छुपा लेते हैं
कभी कभी ये पापी पेट
कैसे कैसे खेल सिखा देता है .
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वह नहीं सीख पाई
अभिनय का ककहरा
कभी कभी केवल देह
डी.लिट बना देती है .
अभिनय का ककहरा
कभी कभी केवल देह
डी.लिट बना देती है .
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उनकी देह से खो गई है
रीढ़ की हड्डी
कभी कभी उसका न होना
कितना सुकून देता है .
रीढ़ की हड्डी
कभी कभी उसका न होना
कितना सुकून देता है .
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मेहनत करो आगे बढ़ो
कुछ न कुछ बन ही जाओगे
कभी कभी नसीहतें
सच कहने से कतराती हैं .
कुछ न कुछ बन ही जाओगे
कभी कभी नसीहतें
सच कहने से कतराती हैं .
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तुम मुझे कुछ न दो
मुझे यूं ही रहने दो
कभी कभी कुम्भकार के रीते हाथ
कमाल का शिल्प गढ़ते हैं .
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आंगन टेढ़ा था
वह यह सोच कर नहीं नाची
कभी कभी समतल सतह पर भी
पैर फिसल जाते हैं . .
मुझे यूं ही रहने दो
कभी कभी कुम्भकार के रीते हाथ
कमाल का शिल्प गढ़ते हैं .
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आंगन टेढ़ा था
वह यह सोच कर नहीं नाची
कभी कभी समतल सतह पर भी
पैर फिसल जाते हैं . .
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एक हाथ में कलम की तलवार
दूसरे में कागज की ढाल
कभी कभी कम्प्युटर बहादुरों के खिलाफ
ये हथियार कितने अधूरे पड़ जाते हैं .
दूसरे में कागज की ढाल
कभी कभी कम्प्युटर बहादुरों के खिलाफ
ये हथियार कितने अधूरे पड़ जाते हैं .
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महापुरुषों के चरण छूने से
मैं बहुत झिझकता हूँ
कभी कभी उनके चरणों की रज में
घातक जीवाणु पाए जाते हैं .
मैं बहुत झिझकता हूँ
कभी कभी उनके चरणों की रज में
घातक जीवाणु पाए जाते हैं .
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कल फिर घुडदौड होगी
अस्तबल से निकलेंगे अहंकारी घोड़े
कभी कभी प्यादों तक से
घोड़े हार जाते हैं .
अस्तबल से निकलेंगे अहंकारी घोड़े
कभी कभी प्यादों तक से
घोड़े हार जाते हैं .
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महापुरुष जी घर आये
सहम उठे सारे बच्चे
कभी कभी सम्मानितजन
खौफ का दौना लिए आते हैं .
सहम उठे सारे बच्चे
कभी कभी सम्मानितजन
खौफ का दौना लिए आते हैं .
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कविता लिखना या न लिखना
मेरा नितांत निजी मामला है
कभी कभी हमारी निजता
कैसे गुल खिलाती है .
मेरा नितांत निजी मामला है
कभी कभी हमारी निजता
कैसे गुल खिलाती है .
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मेरी कविताएँ कविता कम
शिकायती पत्र अधिक होती हैं
कभी कभी हमको उम्रभर
लिखने का सलीका नहीं आता .
शिकायती पत्र अधिक होती हैं
कभी कभी हमको उम्रभर
लिखने का सलीका नहीं आता .
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उसके घर आंगन में
बरस रही है बारिश
कभी कभी यह सोच कर
खोया हुआ छाता बहुत याद आता है .
बरस रही है बारिश
कभी कभी यह सोच कर
खोया हुआ छाता बहुत याद आता है .
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मेरे छाते की परिधि
बहुत कम निकली
कभी कभी मन बेचारा
यूं भी भीग जाता है .
बहुत कम निकली
कभी कभी मन बेचारा
यूं भी भीग जाता है .
Top of Form
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बच्चा बना रहा है
कागज की नाव
कभी कभी कागज़ी लम्हे
स्मृति का हिस्सा बन जाते हैं .
कागज की नाव
कभी कभी कागज़ी लम्हे
स्मृति का हिस्सा बन जाते हैं .
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बच्चा जानता है बनाना
सिर्फ कागज का हवाईजहाज़
कभी कभी बारिश में सपने
उड़ान को तरसते हैं
सिर्फ कागज का हवाईजहाज़
कभी कभी बारिश में सपने
उड़ान को तरसते हैं
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एक दिन वह आई थी
बारिश में नहाई हुई
कभी कभी वे भीगे पल
मन ढूँढता रह जाता है .
बारिश में नहाई हुई
कभी कभी वे भीगे पल
मन ढूँढता रह जाता है .
बुधवार, 14 अगस्त 2013
कभी कभी : आजादी को याद करते हुए
विश्वविजयी तिरंगा प्यारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा
कभी कभी गाते गाते
आँखे डबडबा क्यों आती हैं ?
झंडा ऊँचा रहे हमारा
कभी कभी गाते गाते
आँखे डबडबा क्यों आती हैं ?
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उसने कहा वंदेमातरम
फिर सहम के चारों ओर देखा
कभी कभी वंदना करता आदमी
इतना डर क्यों जाता है .
फिर सहम के चारों ओर देखा
कभी कभी वंदना करता आदमी
इतना डर क्यों जाता है .
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ताजे फूल ,तिरंगा ,डंडा
,रस्सी ,लड्डू
सारे इंतजाम मुकम्मल हैं
कभी कभी फिर भी लगता है
सब कुछ बहुत अधूरा है .
सारे इंतजाम मुकम्मल हैं
कभी कभी फिर भी लगता है
सब कुछ बहुत अधूरा है .
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देशभक्ति का तराना
गाते हुए
उसके कमर पर काट रही हैं चींटियाँ
कभी कभी चींटियाँ भी
झूठ बर्दाश्त नहीं कर पातीं .
उसके कमर पर काट रही हैं चींटियाँ
कभी कभी चींटियाँ भी
झूठ बर्दाश्त नहीं कर पातीं .
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तड़के प्रभात फेरी में गया
फिर चौक पर झंडा फहराया
कभी कभी बेचारा मन
जाने किन ख्यालों में खो जाता है .
फिर चौक पर झंडा फहराया
कभी कभी बेचारा मन
जाने किन ख्यालों में खो जाता है .
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जश्ने -आज़ादी का मौका है
तमाम फूलों को बींध रही हैं सुईयां
कभी कभी हंसी खुशी में
अंगुलियां लहुलुहान हो जाती हैं .
तमाम फूलों को बींध रही हैं सुईयां
कभी कभी हंसी खुशी में
अंगुलियां लहुलुहान हो जाती हैं .
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