शनिवार, 13 अक्तूबर 2018

तितली जैसी .....

उसके होठों के नीचे 
तितली हमेशा बैठी मिली 
वह तानाशाह कहाँ छुपाये रहा 
उम्र भर अपना प्यार 
और खिला हुआ 
मकरंद से भरा गुलाब.

छोटी कविता -1

कविता -१४ अक्टूबर १८

इतिहास के पन्नों के बाहर 
खांटी सच के इर्द -गिर्द
साफ़ लफ्जों में दर्ज है
कमोबेश  हर तानाशाह 
विध्वंस के मंसूबे बनाता 
लिखता रहा  
उसके हाशिये पर कवितायें.

कविता  हमारे अहद की 
सबसे खतरनाक साजिश 
है.

मोची राम

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