सोमवार, 11 मई 2020

स्मृति में पिता


मेरे पिता सेवानिवृत हुए तो
दफ्तर की मेज पर रखे
विदाई के सामान वहीं छोड़ आये
अपनी अधिकारिक अहमन्यता
मोटे अक्षरों में छपी मानस की प्रति
और नक्काशीदार फोल्डिंग छड़ी भी.
दे आये छावनी पेड़ के नीचे
शताब्दियों से बैठी
जिस तिस को दुआएं देती माई को
गलत हिज्जों में खुदे अपने नाम वाले
चांदी की परत वाले सेना मैडल भी
गुपचुप ,सबसे आँखें बचाकर.
वह जल्द से जल्द पकड़ना चाहते थे
घर की ओर जाने वाली रेलगाड़ी
भूल जाना चाहते थे
द्वितीय विश्व युद्ध की रक्ताभ यादें
सैनिकों के यांत्रिक सलाम
इस्पात ठुंके जूतों की खट-खट.
वह इस तरह घर वापस आये
जैसे बच्चे स्कूल से लौट आते हैं
लम्बी छुट्टियों की खबर लेकर
जैसे औरतें लौट आती हैं
युद्ध के लिए अलविदा होते
ओझल होते अपने आदमी को छोड़ कर.
वह वापस आये तो इस तरह आये
जैसे कभी चक्रवर्ती सम्राट आया था
कलिंग से अशोक बन कर
सांस तक लेते रहे संभल संभल कर
बिना उत्तर की प्रत्याशा के पूछते रहे
युद्ध खत्म होने के बाद
बच्चे कहाँ चले जाते हैं ,अंततः।

सोमवार, 4 मई 2020

पेंसिलों वाला सपना


एक अजीब –सा सपना रोज देखता हूँ
मेरे पास है चिकने पन्नों वाली डायरी
साथ हैं  बेहद सलीके से तराशी हुई चंद पेंसिलें  
जिनमें से आती कच्ची लकड़ी की गंध
पेन्सिलों के पृष्ठ भाग में नत्थी है एक रबर
वक्त द्वारा खींच दी गयी  हर अवांक्षित लकीर  को
आराम से मिटाते चलने के लिए.

ऐसी पेंसिलें अब चलन में नहीं
जिनका ग्रेफाइड टूट कर क़ागज पर बार बिखरता हो  
पेन्सिलों का खुदरा दुकानदार बताता है
पूछना चाहता हूँ  कि क्यों
क्या अब कोई कहीं कुछ गलत नहीं लिखता
कि उसे दुरुस्त कर लिया जाये.

चाह कर भी कुछ न पूछ पाया
चुपचाप उचक कर साइकिल पर हुआ सवार
चला गया शहर के उस कुख्यात चायघर की ओर
जहाँ लोग निरंतर चाय पीते  
क्रांति का अमूर्त रोडमैप बनाते
एक दूसरे को दिखाते रिझाते
लोटपोट हुए जाते हैं
वहाँ हरदम सघन सफ़ेद धुआँ
और अदृश्य कोलाहल भरा रहता है.

कहने को तो हमारे समय की पेंसिलें बहुरंगी हैं
पर इनसे हरेभरे पेड़, नाचता हुआ मोर
कलकल करता नीला चमकीला जल या
सुरखाब के पर कोई नहीं रंगता
इनसे अब कोई नहीं सजाता स्वप्निल ड्योढ़ी.
   
बेतरतीब काली भूरी बैंगनी आकृतियां
हमारे वक्त का सम्भावित मुकद्दर हैं
उदास पन्नों के बीचोंबीच फंसी नुकीली पेंसिलें   
जब तब बरछी बन कलेजे में गहरे तक धंस जाती है.
.



मोची राम

छुट्टियों में घर आए बेटे

बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में   धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...