गुरुवार, 21 मई 2015

तुम्हारे बिना अयोध्या


राम !
तुम्हारी अयोध्या मैं कभी नहीं गया
वहाँ जाकर करता भी क्या
तुमने तो ले ली
सरयू में जल समाधिl

अयोध्या तुम्हारे श्वासों में थी
बसी हुई थी तुम्हारे रग-रग में
लहू बन कर l
तुम्हारी अयोध्या जमीन का
कोई टुकड़ा भर नहीं थी
न ईंट गारे की बनी
इमारत थी वहl
अयोध्या तो तुम्हारी काया थी
अंतर्मन में धड़कता दिल हो जैसे 

तुम भी तो ऊब गए थे
इस धरती के प्रवास से
बिना सीता के जीवन
हो गया था तुम्हारा निस्सार
तुम चले गए
सरयू से गुजरते हुए
जीवन के उस पारl
तुम गए
अयोध्या भी चली गई
तुम्हारे साथ 

अब अयोध्या में है क्या
तुम्हारे नाम पर बजते
कुछ घंटे घडियालl
राम नाम का खोफनाक उच्चारण
मंदिरों के शिखर में फहराती
कुछ रक्त रंजित ध्वजाएंl
खून मांगती लपलपाती जीभें
आग उगलती खूंखार आवाजेंl
हर गली में मौत की पदचाप
भावी आशंका को भांप
रोते हुए आवारा कुत्ते l

तुम्हारे बिना अयोध्या
तुम्हारी अयोध्या नहीं है
वह तो तुम्हारी हमनाम
एक खतरनाक जगह है
जहाँ से रुक -रुक कर
सुनाई देते हैं
सामूहिक रुदन के
डरावने स्वरl

राम !
मुझे माफ करना
तुम्हारे से अलग कोई अयोध्या
कहीं है इस धरती पर तो

मुझे उसका पता मालूम नहीं l

बुधवार, 20 मई 2015

भला आदमी


वह एक भला आदमी था
चुपचाप चला गया
अपनी देह से बाहर
बिना चप्पल पहने
हालाँकि  कुछ पल पहले ही
उसने अपने से कहा था
यार बड़ी भूख लगी है .

वह एक भला आदमी था
जिसे कभी न ढंग से जीना आया
और न कायदे से मरना
ऐसे चला गया जैसे
कोई झप्पर से बाहर आये
मौसम का मिजाज भांपने  .

वह एक भला आदमी था
जिन्दा रहने की ललक कहें  या मजबूरी
उसे लगातार पता लगता रहा कि
जीने के लिए बार बार मरना होता है
फिर भी जीने लायक  पुख्ता जगह
शायद ही कभी मिल पाती है .

वह एक भला आदमी था
उसके तकिये के नीचे से मिले  हैं
कुछ हस्तलिखित पन्ने
जिनकी इबारत कविता जैसी दिखती है
लोग सशंकित हो उठे हैं
वह जितना दिखता था
उतना भला तो नहीं था .

वह एक भला आदमी था
अपनी निजता संभाल नहीं पाया
ठीकठाक तरीके से
उसके बारे में उठ रहे हैं सवाल 
वह यूं क्यों चला गया दबे पाँव
इस तरह भी कोई जाता है भला !
+++++.     
 






मंगलवार, 12 मई 2015

तब समझ लेना




रोटी का पहला कौर तोड़ते हुए
जब खेत खलिहान में लहलहाती
दूध से भरी गेहूं की बालियाँ याद न आयें l

गर्म दूध को पीने से पहले
फूंक मार कर उसे ठंडाते हुए
गाय के थन में अपना जीवन टटोलते
बछड़े का अक्स सामने  न उभरे l

पानी पीने के लिए
गिलास को मुहँ से लगाते ही
कोसों दूर से मटकी भर जल लाती  
बहुरंगी ओढ़नियों से छन कर आता     
पसीने से लथपथ संगीत  सुनाई न दे l

रात के घुप्प अँधेरे में
सुदूर गांव से आती
सिसकियाँ और मनुहार 
सुनाई देनी कतई बंद हो जाएँ l

गर्मागर्म जलेबी को खाते हुए
गांव वाली जंगल जलेबी का 
मीठा कसैला स्वाद जिह्वा पर
खुदबखुद न तैर जाये   l

तब समझ लेना
तुम चले आये हो
अपने घर बार से दूर
इतनी दूर
जहाँ से वापस लौट आने की

अमूमन कोई गुंजाईश नहीं रहती l

मोची राम

छुट्टियों में घर आए बेटे

बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में   धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...