सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

अतीत और इतिहास


हमारे पास कोई इतिहास नहीं
कुछ कपोल कल्पित दंतकथाएँ हैं
लिया दिया सा छिछोरा वर्तमान है
लेकिन हाँ ,कुछ खूबसूरत ख्वाब जरूर हैं
जिनके साकार होने के लिए  
कोई शर्त नत्थी नहीं ।

वैसे होने के नाम पर इतिहास 
काली जिल्द में बंधा 
कागजी कतरन का पुलिंदा  है
मनगढ़ंत गल्प का बेतरतीब  सिलसिला  है
मसख़रों द्वारा गाये गए शोकगीत हैं  
चक्रवर्ती सम्राटों के हरम से आती
नाजायज़ संतति  की सुबकियाँ हैं।

हम हैं और यदि यह बात भरम नहीं तो
यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं
अतीत भी कहीं न कहीं
वक्त के किसी गुमनाम कोने में
पैरों को पेट में छुपाए
इधर या उधर पड़ा  होगा ही 
पर अतीत और इतिहास में बड़ा फर्क होता है।

इतिहास केवल बीता हुआ वह कालखंड नहीं
जिस पर दर्ज हो जिस तिस की देह पर लगे घाव
भूख से बिलखते लोगों की कराह
इस उसके खिलाफ की गयी
कानाफूसी जैसी साजिशें
गर्दन कटने से ठीक पहले
जल्लाद को दी गयी बददुआयेँ।

जिंदा क़ौमों का इतिहास
कभी कोई नहीं लिखता
न किसी ने आज तक यह जुर्रत की
उनके आज की बही के शानदार पन्ने
अतीत से लेकर भविष्यकाल तक
हमेशा बेसाख्ता फड़फड़ाते हैं।

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

कलिंग कहाँ कहाँ है ?



बहुत दिन बीते कलिंग की कोई सुधबुध नहीं लेता
चक्रवर्ती सम्राट को बिसराए हुए अरसा हुआ
प्रजा लोकल गोयब्ल्स के इर्द गिर्द जुटती है
उसे इतिहास की तह में उतरने से अधिक
शब्द दर शब्द फरेब के व्याकरण में
अपना त्रिदर्शी भविष्यकाल
इस किनारे से साफ साफ दिखने लगा है।

बहुत दिन बीते
किसी राजसी रसोईए को नहीं मिला
सामिष पकाने के बजाए
खालिस घी मे बघार कर दाल भात पकाने का हुक्मनामा
राजसी गुप्तचर करछी लिए
चूल्हे पर चढ़ी हंडियों में तपन के सुराग ढूंढते हैं।

कलिंग में अब
आमने सामने लड़ाई की बात नहीं होती
वहाँ की रक्तरंजित धरती में
बिना किसी खाद पानी और साफ हवा के
उपजते हैं सुगंधित बहुरंगी  फूल
वहाँ के लोग अब न धायलों की कराह को याद करते हैं
न मायूस विजेता के पश्चताप को
वे लगातार पूछते रहते हैं
परस्पर साग भाजी के चढ़ते उतरते भाव।

कलिंग में जब युद्ध हुआ तो हुआ होगा
मरने वाले मर गए होंगे
घायलों ने भी थोड़ी देर तड़पने के बाद
दम तोड़ दिया होगा ,आखिरकार
एक राजा विजयी हुआ होगा
एक अपनी तमाम बहादुरी के बावजूद हार गया होगा।

शिलालेखों पर दर्ज हुई इबारत
यदि इतिहास है तो
इसे जल्द से जल्द भूल जाने में भलाई है
अन्यथा महान बनने के लिए
लाखों लाख गर्दनों की बार बार जरूरत पड़ेगी।
कलिंग वहाँ नहीं है
जहां उसका होना बताया जाता है
वह हर उस जगह है
जहां मुंडविहीन देह के शीर्ष पर
सद्भावना और वैश्विक शांति की पताका
बड़े गर्व से लहराने का सनातन रिवाज है।

मोची राम

छुट्टियों में घर आए बेटे

बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में   धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...