रविवार, 23 मई 2021

मई महीने की कविता





मई का महीना नि:शब्द गुजर रहा
मेरी खिड़की से दिख रहीं
चारदीवारी पर चहलकदमी करती
चंद मरियल बिल्लियाँ
उन्हें देख कबूतर भी नहीं डरते
ये सभी कई दिन से भूखे हैं.
सडकें फिर खूब वीरान हो चली हैं
कांख में गठरी, बगल में बच्चा दबाये
जवान मादाएं अपने-अपने नर के सहारे
निकल आई हैं पैदल ही ऊँची उडान पर
आदमी को नहीं पता
वे चलता चलता कहाँ चला जाएगा.
लॉकडाउन के आरामदायक दिनों में
ठंडे कमरे से झांकती कई जोड़ी आखों के लिए
धूप, बहुरंगी फूलों से लदी बोगेनवेलिया की झाड़
आसमान की ओर मुंह उठा रोती बिल्लियाँ
थकन से चकनाचूर बच्चों का पैर पटक रोना
उदास हो लेना उनके लिए शगल भर है.
यकीनन मेरी खिड़की से न हिमालय समीप सरकता है
न अटरांंटिका पर पेन्गुईन शोरोगुल करती हैं
न सियाचिन से घर लौटते जवानों की टोली दिखती है
न बर्फ के गोले फेंकते नॉटी कपल्स नज़र आते हैं
न किसी जलाशय के आसपास नंगे मसखरे मुंह चिढ़ाते हैं
वहाँ से बार-बार दिख जाते हैं सिर्फ दु:स्वप्न.

गुरुवार, 20 मई 2021

फिसलता वक्त



 

एक-एक कर छूटती जा रही

मनपसंद आदत, शानदार शगल, दिलफ़रेब लत

जीवन में गहरे तक समायी अराजकता

जब तब उदासी ओढ़ लेने का हुनर और

कहीं पर कभी भी बेसुध नींद में उतर जाना

मानो मन ने भुला दिया अरसा हुआ।

 

उम्र फिसल रही है हाथ से धीरे-धीरे..

बहुत दिनों तक हर फ़िक्र को

बेहद लापरवाही से धुंए में उड़ाया

मन बेवजह मुदित हुआ तो

नुक्कड़ वाले हलवाई के यहाँ जा जीम आये

दौने में धर दो चार इमरती

देर तक पानी न पिया कि

जीभ पर टिका स्वाद तत्क्षण गुम न जाये।

 

ढेर सारी हिदायत तमाम परहेज

हर सांस के साथ तरह-तरह की नत्थी शर्तें

जिन्दा बने रहने को बार-बार करना हो

प्राणांत का फुलड्रेस रिहर्सल

देह से गमन ऐसा जैसे अमरत्व का कोई स्वांग.

मरना जीने से भी जटिल हुआ मानो।

 

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रविवार, 9 मई 2021

एक बार


 

 एक बार बस एक ही बार

किसी दिन किसी लम्हे मुझे लगा
कि शायद यह प्यार है
कान के नज़दीक की शिरायें
हौले से कम्पित हुईं
कनपटी पर ताप बढ़ा कि
भभक उठा पूरा वजूद
वैसे यह आवेग जैसा कुछ था बेशक
मुझे यकीन नहीं होता ,यकीनन.
आदिम प्यार के किस्से लोक में प्रचलित हैं
उनसे इतर मेरे पास दुनियावी पैमाने से मापने के
इनेगिने कदीमी उपकरण हैं
जैसे जाड़ों में धूप की लकीर जब
जर्जर हुए भुतही इमारत के कंगूरे पर जा टिके
तो मानना पड़ता है कि लगभग
अब परछाईयां उलांघने वाली हैं समूचे दिन.
प्यार सिर्फ इतना ही है, बस इत्ता सा
कि लगे मन के भीतर कुछ प्रत्याशित घटा
कोई तेज रफ्तार रेलगाड़ी गुजरे
पटरियों के नज़दीक के खेतों में उगी
गेहूं की ताजातरीन बालियों में हरकत हो
हवा में घुल जाए गेहुँआ दूध की अनचीन्ही गमक.
मैंने बार –बार खुद से सवाल पूछा
क्या यही होता है प्यार की गीली जमीन से होकर गुजर जाना
जिस पर ठहरे उदास पदचिन्हों को
प्रेम कथाओं के पन्नों में संरक्षित कर
हम सदियों से बेवजह मुग्ध हुए जाते हैं
सदियाँ बीती मैं देह की दहलीज के मुहाने खड़ा
न जाने कब से अनागत जवाब की बाट जोहता हूँ.

गुरुवार, 6 मई 2021

अतीत और इतिहास

 



हमारे पास कोई इतिहास नहीं
कुछ कपोल कल्पित दंतकथाएँ हैं
लिया दिया सा छिछोरा वर्तमान है
लेकिन हाँ ,कुछ खूबसूरत ख्वाब जरूर हैं
जिनके साकार होने के लिए
कोई शर्त नत्थी नहीं ।
वैसे होने के नाम पर इतिहास
काली जिल्द में बंधा
कागजी कतरन का पुलिंदा है
मनगढ़ंत गल्प का बेतरतीब सिलसिला है
मसख़रों द्वारा गाये गए शोकगीत हैं
चक्रवर्ती सम्राटों के हरम से आती
नाजायज़ संतति की सुबकियाँ हैं।
हम हैं और यदि यह बात भरम नहीं तो
यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं
अतीत भी कहीं न कहीं
वक्त के किसी गुमनाम कोने में
पैरों को पेट में छुपाए
इधर या उधर पड़ा होगा ही
अतीत और इतिहास में बड़ा फर्क होता है।
इतिहास केवल बीता हुआ कालखंड नहीं
जिस पर दर्ज जिस-तिस की देह पर लगे घाव
भूख से बिलखते लोगों की कराह
इसके उसके खिलाफ की गयी
कानाफूसी जैसी साजिशें
गर्दन कटने से ठीक पहले
जल्लाद को दी गयी बददुआयेँ।
जिंदा क़ौमों का इतिहास
कभी कोई नहीं लिखता
न किसी ने आज तक यह जुर्रत की
उनके आज की बही के शानदार पन्ने
अतीत से लेकर भविष्यकाल तक
हमेशा बेसाख्ता फड़फड़ाते हैं।

लड़कियों के ख्वाब



 

कोई कहीं

घुमाती होगी सलाई

रंगीन ऊन के गोले
बेआवाज़ खुलते होंगे

मरियल धूप में बैठी
बुनती होगी
एक नया इंद्रधनुष.


लड़कियां
कितनी आसानी से उचक कर
पलकों पर टांग लेती हैं
सतरंगे ख्वाब.

अलविदा

बैग पैक करते हुए
उसने हवाओं से कहा
शायद आखिरी बार
तो अब?
इसका जवाब सादा था
पता था हमें
कहना बड़ा मुश्किल.
अलविदा .....
दुनिया का सबसे अधिक
जिंदा जावेद और जटिल लफ्ज़ है.

तितली और तानाशाह

उसके होठों के नीचे
तितली हमेशा बैठी मिली
तानाशाह कहाँ छुपाये रहा
उम्र भर अपना प्यार
और खिला हुआ
मकरंद से भरा गुलाब.

कविता और साजिश

इतिहास के पन्नों के बाहर
खांटी सच के इर्द -गिर्द
साफ़ लफ्जों में दर्ज है
कमोबेश हर तानाशाह
विध्वंस के मंसूबे बनाता
लिखता रहा
उसके हाशिये पर कवितायें.

कविता हमारे अहद की
सबसे खतरनाक साजिश है.

 

मंगलवार, 4 मई 2021

अभी अभी


 


अभी अभी एक लड़की नहा कर गीले बाल लिए छत पर आई है

जहाँ तेज धूप से लिपटी गर्म हवा, धूल के कण और उचाट उदासी है

सामने वाले घर की खिड़की अधखुली है

जहाँ हमेशा एक दुबला लड़का हथेली पर चेहरा टिकाये रहता है

कहते हैं कि सदियों से वह वहां खड़ा

आती जाती लडकियों की ओर नि:शब्द फब्तियां उछालता है

कभी कभी उसकी युक्तियों कामुकता भरी होती  है

फिर भी उस लड़के के होने भर के अनुमान से

कतिपय मादा देह रह-रह कर सिहर-सिहर उठती हैं.  

 

अभी अभी भरी दोपहर में गली के दूसरे सिरे से

कुत्तों के गुर्राने और बिल्लियों के रोने की भ्रामक आवाजें आई हैं  

अपने एकांत में घिरा घर का इकलौता बुजुर्ग सोचता है

हरदम गली में चिल्ल-पों करते बच्चे कहाँ गुम हुये यकायक

वे छुपम-छुपाई खेलते कहीं बड़प्पन की तलाश में

वक्त की अल्पज्ञात दिशाओं में तो नहीं निकल गये

गली में फैली सूखी पत्तियों के ऊपर से 

किसी अपशकुन की तरह दूर सड़क से हूटर बजाती एम्बुलेंस गुजरी है.

 

कोई कहीं कोने में चुपचाप खड़े आदमी से कोई पूछ रहा है

ए , तू यहाँ क्यों खड़ा , मंशा क्या है

यहाँ तेरे लायक कोई नहीं दूर दूर तक

वैसे तेरी उम्र क्या है ?

आदमी खड़ा खड़ा उँगलियों पर गिनने लगा

अतीत के स्याह सफ़ेद पन्ने

बोला, तुमने तो यह क्या काम दे दिया मुझे

अब बाकी बची उम्र तो बेसाख्ता बीत जाएगी

समय की गिनतियों को जोड़ते-घटाते-मिटाते.

 

छोटे से शहर में आजकल सिर्फ दीवारे ही दीवारें हैं

कोई खुलेआम यहाँ ताकाझांकी नहीं करता

हर सुगबुगाहट से बुरी खबर आती है

किसी घर के भीतर खाली बर्तनों से भूख रिसती है

बच्चे रोते-पीटते झपटते हैं एक दूसरे पर

उन्होंने चमत्कारिक मदद के लिए

आसमान की ओर ताकना छोड़ दिया है

वहीँ कहीं एक घर ऐसा भी है

जिसके अंदर की बेमकसद ठण्डक में गलीचे पर लेटे

भरपेट खाए-अघाए लाला-लालाइन खेलते हैं लूडो

सोचते हैं,आओ चलो हँसते खेलते दबे पाँव

अपने वक्त के आरपार निकल जाएँ.

 

 

 

 

शनिवार, 1 मई 2021

कैमरे की जद में करियर


 

फोटोग्राफ एक क्षण है-शटर दबाने के बाद, वह कभी लौटकर नहीं आता - रेने बरी

वह वहां खड़ा है कैमरा हाथ में थामे

शमशान में सीली हुई लकड़ियों से उठते धुंए को फोकस करता

अग्निशिखा के पार छज्जे पर खड़ी एक किशोरी

अपने भारी भरकम भाई को गेंद की तरह उछालती लपकती

उसके कैमरे के लेंस और दृष्टि की परिधि में है

हो सकता है एक दिन वह रघु राय जैसा

कोई नामवर फ़ोटोग्राफ़र बन जाये।

 

वह रोजाना यहाँ आ डेरा जमाता है आजकल

एक एक चिता की तफ़सील कैद करता

अपने उसी डिजिटल कैमरे में

जिसमें वह कभी अपने होंठ चबाता

दर्ज करता फिरता था किसी सुडौल मॉडल की देह के

प्रत्येक चक्रवात की हर बारीकी को सिलसिलेवार।

 

अख़बार के बाज़ार  में इन दिनों

मुर्दाखोर परिंदों, कीटों और धधकते शोलों की बड़ी डिमांड है

खौफ़ की मंडी  भयावह तस्वीरों से अंटी  है

सम्प्रति सुहाने सपनों का कोई तलबगार नहीं

मौत के पैने पंजे से बच निकलने के लिए

देशज नीमहकीमी नुस्खों की भरमार हैं।

 

चा रहा  तो सुनहरे फ्रेम में जड़वा लेगा

सीना फुलाए योद्धा होने की प्रतीति देती निजी छवि

सच भले ही वक्त में बिला जाये

नयनाभिराम झूठ प्राय कालजयी होता है।

 

शमशान में कैमरा हाथ में लिए निर्लिप्त खड़ा वह

खटाखट उतार रहा है तस्वीरें

उसके मन के भीतर करियर का ग्राफ

भर रहा है कुलांचे

नैराश्यपूर्ण माहौल में

वह मन ही मन रॉबर्ट कापा* बनने का

दुर्लभ सपना देख रहा है।


#हंगरी में जन्मे अमरीका में पले बढे रॉबर्ट कापा शुरुआती दौर के उन दुर्लभ फोटोग्राफरों में सबसे प्रमुख हैं जिन्होंने युद्ध की विभीषिका को अपना विषय बनाया। 

 

 

 

मोची राम

छुट्टियों में घर आए बेटे

बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में   धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...