रविवार, 25 अप्रैल 2021

रात की बात

 

 


रात घिर आई  

बाहर चांदनी छिटकी हुई है

चाँद वैसा ही जैसा हुआ करता  

दिन भर खूब डर लिए

अपने डर से लोगों को खूब डरा दिया.

 

अब बस भी करो ....

कच्ची नींद में जग जाने की वजह से

अधूरे रह गए सपनों को नए सिर से देखें ..

सुबह जब होगी तब होगी .

 

रात के एक एक पल को ठीक से जी लें

रात हमेशा सनसनीखेज नहीं होती

बेहद शांत और सहृदय भी होती है .

कल जो होगा देखा जायेगा.

 

फ़िलहाल आज को

उसकी तात्कालिकता में तो महसूस कर लें .

 

आज अलसभोर

 







अलसभोर घर की छत पर खिंची

कपड़े सुखाने वाली प्लास्टिक की डोर पर

एकाकी चिड़िया चहचहा रही

वह वाकई चहचहा रही या

पुकारती अपनी बांधवी को , कौन जाने

दिन की शुरुआत का यह अप्रत्याशित तरीका है.

 

आज का बिना खुला अखबार

दरवाजे पर पड़ा बेवजह फड़फड़ाता है

उसके अंदरूनी पेजों  से

रिस रही है रह रह कर

गिद्धों के महाभोज की खबर

मुखपृष्ठ पर स्वादिष्ट स्वास्थ्यवर्धक

चाॅकलेट के आमद की महत्वपूर्ण सूचना है.

 

उसके हाशिये पर यकीनन छपी होंगी

उचित इलाज न मिलने के चलते मरे आदमी

बिलखते बच्चों और विलाप करती औरतों की तस्वीरें

गैस और प्राणरक्षक दवा के लिए

दर दर भटकते भाग्यविहीन लोगों की तकलीफों का  

सिंगल कॉलम व्यंग्यात्मक  विवरण भी होगा.

 

अखबार उठाते -खोलते मन डरता है

सुनाई देती है इसमें से

मंत्रोच्चार के साथ कूच करती हुतामाओं की

कूटनीतिक पदचाप

इस क्रूर और जटिल समय में

जीना भी हुआ लगभग हास्यास्पद.

 

बरामदे में रखी सरकंडे की कुर्सी पर बैठ

रोज सुबह सवेरे ख्याल आता है

बिना कुछ लिखे पढ़े

महज़ अटपटे अनुमानों, भदेस चुटकुलों और

अनमोल वचनों  के सहारे

जितना वक्त निरापद गुजर जाये

चैन की सांस  लेते, वही बेहतर.

 

 

 

शनिवार, 24 अप्रैल 2021

मरता हुआ आदमी




कोविड वार्ड में मरणासन्न आदमी
किसी चमत्कार का इंतजार नहीं करता
वह नहीं देखता नीम बेहोशी में
भविष्य का  कोई सपना
अतीत की दुनिया  में पाता है वह
दर्द से परे आनन्द से लबरेज अदद निरोगी परकाया.

कोविड वार्ड में मरणासन्न आदमी
हताशा से परे अन्वेषित कर लेता है
किसी ड्राईक्लीन की दुकान पर बरसों पहले गुम हुई
अपनी पसंदीदा ढेरों जेब वाली
हल्के हरे रंग की पतलून जैसी उम्मीद
हालांकि अब इस तरह की पोशाक
मसखरे भी नहीं पहनते आजकल.

कोविड वार्ड में मरणासन्न आदमो
किसी गैस या इंजेक्शन के आने की खबर पा
अविश्वास से पलक नहीं झपकाता
अविचल छत में लगे पंखे को
बड़े इत्मिनान से घूरता है
उसकी देह वेंटिलेटर से हटे
मरने के लिए वोटिंग में पड़ा
कोई और बन्दा आगे बढे.

कोविड वार्ड में मरणासन्न आदमी
जिंदा मुर्दा के आंकड़े से बाहर है
अब उसे कहीं आने-जाने की
कोई जल्दबाज़ी नहीं
समीपस्थ शमशान में सुलगती गीली लकड़ियों का
धुंआ ही धुआं भरा है.

कोविड वार्ड में मरणासन्न आदमी
धीरे धीरे अपनी देह से बाहर जा रहा है
उसकी मृत्यु का घोषणापत्र कम्प्यूटर में है
रिक्तियों के बीच उसकी शिनाख्त की पूर्ति हो तो
वह अंततः बाकायदा मरे
ढंग से मरने में भी लाखों अड़ंगे है

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

बेटे के महानगर में

 


 

 बेटे के महानगर में

कोई धरती, कोई आसमान नहीं

सिर्फ बॉलकनी है, जहाँ से दिखती हैं

यहाँ-वहां सरकती बौनों की कतार

दर्पण से विमुख, आपको हक है

मानते रहो खुद को विशालकाय गुलीवर.

 

बेटे के महानगर में

बहुत कुछ स्वचालित है

मौसम के मिज़ाज से लेकर

प्रेमपगा नगमा तक सुनाने वाला एलेक्सा है

तरह तरह की बातें

समय रहते याद दिलाने वाले उपकरण  हैं

कहीं कोई भूलचूक नहीं, सभी कुछ अचूक.

 

बेटे के महानगर में

सुकून भरे जिंदादिल घर-बार नहीं

बच्चों की किलकारियों से भरे आंगन  नहीं

एक दूसरे को चुपके-चुपके निहारती

लालसा भरी अलमस्त सरगोशियाँ नहीं

हाउसिंग लोन की ईएमआई का गुणा-भाग है.

 

बेटे के महानगर में

राजधानी के बगलगीर होने का

पराई हल्दी की गाँठ पा

पंसारी बन बैठने का बहुरुपियापन है

वीकेंड पर छीजती जिन्दगी रिचार्ज करने को

मसालेदार पानी-पूरी गटकने या

ठण्डी-ठार बियर पीने की बेमिसाल ऐय्याशी है.

 

बेटे के महानगर में

फोन या लैपटॉप में ऊँगलियां  फिराते ही

हुक्म बजा लाने वाले जिन्न मौजूद हैं  

वे कभी किसी बात पर सॉरी नहीं उच्चारते 

थैंक्यू कहे जाने की उम्मीद नहीं करते

अपने काम से काम रखते हैं.

 

बेटे के महानगर का

कोई मोहनजोदड़ो या हड़प्पा नहीं

सिर्फ सख्त खुरदरी बंजर जमीन है

जहाँ चीटियों तक ने अरसा हुआ आत्महत्या कर ली 

तितलियाँ ने मकरंद की आस स्थगित की

खुशबु और स्वाद बोतलबंद हुए.

 

बेटे के  महानगर में

उजाला खिडकियों में लगे कांच के पीछे रहता है

अँधेरा स्वेच्छाचारी है

उसके होने या न होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता

अलादीन का चिराग नदारद  हैं

उआज्ञाकारी जिन्न ही जिन्न हैं चारों ओर.

 

बेटे के महानगर में

कार्यकुशल रोबोट ही रोबोट हैं

शिनाख्त हरदम गले में झूलती  है

विविध पासवर्ड समय-असमय गुम हो लेते  हैं

उसका नाम वर्तमान की तरह ऑब्सलीट हुआ  

जिसे बताता वह बेवजह शरमाता है.

 

बेटे के महानगर में

मेरा बेटा वहां नहीं रहता

डाटा से लबरेज़ मैमोरी कार्ड रहता है

चाहे –अनचाहे

उसे खंगालने हमें  बार-बार

उसके पास प्राय: आना जाना होता है.

 

 


रविवार, 4 अप्रैल 2021

राजा का सच


 कविता के लोकतंत्र में

राजा खुलेआम निकलता है
मौलिक नँगई का राजदण्ड लिए
नंगे को नंगा कहने वाला बच्चा
पोर्नोग्राफी पर निगाह गड़ाये है
ज़रा -सी फुरसत मिले
तो दोबारा सच बोले.

मोची राम

छुट्टियों में घर आए बेटे

बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में   धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...