रविवार, 22 नवंबर 2020

वक्त की रेत

 

मेरी उधड़ी हुई जेब में है

उदासी ही उदासी

कालातीत दुर्लभ।


मेरी बंद मुट्ठी में भरी है

सिर्फ़ रेत ही रेत

रेतघड़ी वाले वक्त से

उसका कोई लेना देना नहीं।

 

मेरे भीतर की खोह में है

वनैली मुस्कान का बसेरा है 

इच्छाओं के रक्तरंजित सफ़े

पलक झपकते पलटते हैं।


समय पर ठहरी देह  

हौले-हौले

बेआवाज़ व्यतीत हुई जाती है।

 

बीतता वक्त

 


प्यार को लेकर सदा संशय रहा

प्रार्थना के लिए न मिले उपयुक्त शब्द

उधार लिया आनन्द कब रीता पता न चला

साइकिल चलाना सीखते सीखते

हैडल से हाथ हटा देखने लगा

पता नहीं कब अजब अश्लील सपने.

 

बचपन उहापोह में बीता

कैशोर्य आशंकाओं में व्यतीत हुआ

जवानी रीती मायूसी  में

कहीं कुछ उल्लेखनीय  न घटित हुआ

अपना नाम ऐसे उच्चारा 

किसी दुर्दांत अपराधी का नाम लिया.

 

जीवन की सांध्य बेला  में

भावुकता का आग्रह है कि

बीते वक्त को तिलांजलि दे

बंधुजनों से कहा जाये

जाओ लौट जाओ अपने अकेलेपन में

चलो, हम ख़ुद से देर तक बतियायें.

 

मोची राम

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