रविवार, 23 सितंबर 2018

एक बार .........


                                  
एक बार बस एक ही बार
किसी दिन किसी लम्हे मुझे लगा
कि शायद यह प्यार है
कान के नज़दीक की शिरायें
हौले से कम्पित हुईं
कनपटी पर ताप  बढ़ा कि
भभक उठा पूरा वजूद
यह आवेग जैसा कुछ था बेशक
मुझे यकीन नहीं होता यकीनन.

आदिम प्यार के किस्से  लोक में प्रचलित हैं
उनसे इतर मेरे पास दुनियावी पैमाने से मापने के
इनेगिने कदीमी उपकरण हैं
जाड़ों में धूप की लकीर जब
जर्जर हुए भुतही इमारत के कंगूरे  पर जा टिके
तो मानना पड़ता है कि 
अब अंधेरा नापने को है समूचा दिन.

प्यार सिर्फ इतना ही है बस इतना-सा 
लगे कि मन के भीतर कुछ प्रत्याशित घटा
कोई तेज रफ्तार रेलगाड़ी गुजरे और 
पटरियों के नज़दीक के खेतों में उगी
गेहूं की ताजातरीन बालियों में हरकत हो
हवा में घुल जाए गेहुँआ दूध की अनचीन्ही गमक.

मैंने बार –बार खुद से पूछा
क्या यही है प्यार की गीली जमीन से होकर गुजर जाना
जिस पर ठहरे उदास पदचिन्हों को
प्रेम कथाओं के पन्नों में संरक्षित कर
हम सदियों से बेवजह मुग्ध हुए जाते हैं
सदियाँ बीती मैं देह की दहलीज के मुहाने खड़ा
न जाने कब से अनागत जवाब की बाट जोहता हूँ.





शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

उस दिन ......

...
उस दिन मैंने दवा रखने वाली
छोटी छोटी रंगीन डिब्बियों में
एक एक कर सुबह दोपहर शाम के हिसाब से
सोमवार से लेकर रविवार तक
जिंदा बने रहने की हिकमत को करीने से सजाया
फिर छत की ओर तेजी से घूमते पंखे की ओर देखा
सोचा चलो जिन्दगी में रची बसी अराजकता ज़रा कम हुई.

बहुत सोचने के बाद याद आया
जिन्हें मैं डिब्बियों के नाम से याद कर रहा
यह तो ऑर्गेनाइजर है
वक्त कितना बदल गया कि
पापा ,हैप्पी बर्थडे ...कहता बेटा
उपहार में ग्लूकोमीटर या ऐसा ही कोई सामान देता 
एक न एक दिन लगभग तस्दीक कर देता है कि
दवाएं रासयनिक दया हैं
किसी की दुआओं से अधिक विश्वसनीय.

उस दिन
टाइम मशीन में बैठ कर
बीते हुए समय में वापस लौट जाने की गाथा का  
दुखांत पटाक्षेप हुआ मानो
विज्ञानं ने अपनी तार्किकता से
छोटी छोटी भावुक आत्मीयता से भरी
मरियल आस छीन ही ली  
इसके बाद बताया कि
जीवन के निविड़ अंधकार में
किसी किस्म की उम्मीद बाँधने से नहीं
बिना सीली हुई माचिस में रखी
शुष्क तीली की सम्यक रगड़ से काम चलता है.

उस दिन के बाद
दवाओं को खाने का वक्त सदा याद रहा
पर  मैं भुलाने लगा 
स्मृति के गोपन कोनों में सहेज कर रखे
दैहिक उन्माद के प्रेमिल लम्हे 
अपनत्व भरे कालातीत पल
और उत्तेजनापूर्ण यथार्थ का गल्प.

उस दिन यकायक जाने क्या हुआ
मेरे भीतर का कापुरुष विजयी भाव के साथ
मेरी लापरवाह निजता को .
बेदर्दी से रौंदता हुआ
चला गया समय के परले पार.









सोमवार, 17 सितंबर 2018

चंद छोटी -छोटी कविताएँ

कोई कहीं
घुमाती होगी सलाई
रंगीन ऊन के गोले
बेआवाज़ खुलते होंगे
मरियल धूप में बैठी
वह बुनती होगी
एक नया इंद्रधनुष 
यह लड़कियां
कितनी आसानी से उचक कर
पलकों पर टांग लेती हैं
सतरंगे ख्वाब।



कविता -2 
बैग पैक करते हुए
उसने हवाओं से कहा
शायद आखिरी बार
तो अब?
इस जवाब सादा था 
पता था हमें
कहना बड़ा मुश्किल
अलविदा ..
दुनिया का सबसे अधिक
जिंदा जावेद और जटिल लफ्ज़ है।

मंगलवार, 4 सितंबर 2018

उसने याद किया ,,,,,



उसने याद किया
हिचकी आईं ,एक बाद एक
और मैं चल दिया उसे खोजने 
मेरे पास था उसका डाक का
आधा अधूरा पता बिना पिनकोड वाला .

कुछ ही देर में
देह हो गई पसीने से तरबतर
लेकिन वह जगह नहीं मिली
जिसके आसपास वह मिल जाता बाट जोहता
उसके जैसे लोग अपने पते पर नहीं मिलते .

पते में नहीं लिखा था
फिर भी मुझे मालूम था
वह रहता है लद्दूमल की सराय के पास
जिसके चबूतरे पर बैठ कल्लू हलवाई का नौकर
बूंदी के लड्डू छानता है.

बहुत खोजा सबसे पूछा
सराय और उसके चबूतरे का कोई
सुराग तक नहीं मिला
लद्दूमल ,कल्लू और उसका नौकर कहाँ गए
किसी को इसका कुछ नहीं पता.

उसके घर से कुछ दूरी पर था
पाकड़ का एक छायादार पेड़
जहाँ बैठ वह कभी कभी लिखता था
उसे कवि होने की गलतफहमी थी
पर इससे किसी का पता मुकम्मल नहीं होता . 
.
छोटे शहरों में नाम भर से मिल जाती है
किसी के होने की पूरी जानकारी
मैं तो इसी मुगालते में था
नहीं जानता था कि बीतते समय के साथ
छोटे शहर बड़े होकर अपने बाशिंदों को भुला जाते हैं.

मैं उसे तलाशता रहा पूरी शिद्दत के साथ
फिर लौट आया झक्क मार कर
डाल आया लैटर बॉक्स में चिट्ठी
उसका अस्फुट पता लिख कर
जैसे घटाटोप अँधेरे में जला आये कोई दिया .

इसके बाद न उसकी कोई खबर मिली
न याद वाली हिचकी आई
बस लौट आया एक दिन भेजी चिट्ठी का लिफाफा
लिखा था जिस पर
दिए गए पते पर उगी हैं बेतरतीब झाडियाँ
जिन पर रहता है गिलहरियों का कुनबा.

एक लावारिस दरख्त पर अपनी रानी की खातिर 
दिन-रात शहद ढोहती  कमेरी मधुमक्खियां  
नेवले टहलते हैं बेख़ौफ़ ,सांप को तलाशते 
चिड़िया लौट लौट आती हैं घोंसले में 
अपने बच्चों की भूख की खातिर.
यह चिट्ठी किसे दें
उसकी शिनाख्त ज़रा साफ़ साफ़ लिखें !

मोची राम

छुट्टियों में घर आए बेटे

बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में   धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...