यह जानना हो तो
किसी मसखरे से पूछो
बाकी लोग तो बस
यूँही हँस लिया करते हैं .
तो उस रिसेप्शनिस्ट से जानें
जिसके जबडों में
मुस्कराते रहने की जद्दोजेहद में
गठिया हो जाता है .
तो उस कैबरे डांसर से पता करें
जिसे ठीक से तन ढकने की मोहलत
घर के बंद दरवाजों के पीछे
कभी कभार ही मिलती है .
तो झांक लो
उन लाचार आँखों में
जिन्होंने अभी तक हर हाल में
सच बोलने की जिद नहीं छोड़ी है .
तो उसे कागजों से निकाल
रूह तक ले जाओ
कविता की मासूम भाषा में
उम्मीद अभी तक जिन्दा है .
तो मौत की दहलीज़ तक ठहल आओ
इसे ऐसे सपने की तरह जियो
जो कच्ची नींद में टूट भी जाये
पर मन मायूस न हो .
सब खुद –ब –खुद पता चलता है
किसी से कुछ मत पूछो
बहती नदी की गति को
तस्दीक की जरूरत नहींJ