गुरुवार, 18 जून 2020

एक कविता उस सनबर्ड के लिए जिसे मैंने हमिंग बर्ड समझा

मैं उसे हमिंग बर्ड समझता
महज पांच ग्राम की चिड़िया
जो जब तब मंडराती
सफ़ेद बैगनी सदाबहार के फूलों के इर्द गिर्द
कितनी चंट है यह नन्हीं सी जान जानती
यहाँ मकरंद बारामासी मिलेगा.

थोड़ा-सा वजन उड़ती जाये फरर्र
बिना किसी कोशिश उड़ान भरे
एक छोर से दूसरे छोर तक
इतनी भागदौड़ किसके लिए
कितनी तृष्णा, कितने आयाम
जो सदा रह जाये अतृप्त.

हमिंग बर्ड बड़ी भोली होती है
बताया एक बहेलिये ने
पिंजरा बड़ा हो तो उसे समझ लेती उपवन
टांग दो कृत्रिम फूलों के बीच शहद भरे ऐम्पोल
वह सरलता से उसे मान लेती पुष्प रस
रसास्वादन करती रहती मगन.

वह सीधी-सादी है पर बड़ी चटोरी है
उसकी दुनिया मधु से इतर नहीं
मैं जब गहरे असमंजस से भर उठा
तब अनायास पता लगा
यह हमिंग बर्ड नहीं देशज सनबर्ड है
जिसे उड़ना ही नहीं तीखी आवाज़ में गाना भी आता है.

हमिंग बर्ड सन बर्ड जैसी सिर्फ दिखती है
पर दोनों की है अलग-अलग दुनिया
पृथक पृथक आसमान
अपनी अपनी चहचाहट
उड़ान का निजी व्याकरण
उनके आवेग भी नितांत मौलिक हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मोची राम

छुट्टियों में घर आए बेटे

बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में   धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...