रविवार, 13 जनवरी 2013

कविता वही है ....

कविता वही
जो सांसों के साथ एकाकार हो जाये
जो किसी मुर्दा भाषा  की मोहताज़ न हो
जिसके लिए शब्दों को खोजते हुए
शमशानी एकांत में न उतरना पड़े .

कविता वही
जो किसी खुशबू की तरह चली आये
बिन बुलाए हँसती खिलखिलाती
जो किसी शैतान बच्चे की तरह
आ जाये घर में बिना अनुमति 
बिना पुकारे या कॉलबैल बजाये .

कविता वही
जिससे संवाद कायम करते हुए
किसी दुभाषिये की जरूरत कभी न हो
जो किसी एक की  नहीं सभी की हो
अपने समय को मुहँ चिढ़ाती
बिंदास .

कविता वही
जिसको नकारने की धृष्टता कोई न करे
जिसका रंग, रूप ,मजहब, जाति
कोई न पूछे
जो सारी वर्जनाओं और मर्यादाओं का
अतिक्रमण करती
चली आये ,कभी भी कहीं भी  .

ए कविता ! तेरा ही मुझे इंतजार है
और पक्का यकीन भी
तुम एक न एक दिन
और शायद रोजाना आओगी
मेरे पास ,बिलकुल आसपास .

2 टिप्‍पणियां:

  1. घर में कविता के 'दर्शन' आप रोज ही करते हैं
    वही कविता निर्मल है
    मूल भी वही है कविता का
    कविता जो एक दर्शन है
    'ना' मत कहना
    'दर्श' ही 'अर्श' है
    मन कविता के लिए
    इंसान का पक्‍का फर्श है।

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मोची राम

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