मोची राम
मेरी खिड़की के उस पार
काली मटमैली सड़क के किनारे
एक बूढ़े पीपल के तने के करीब
फटेहाल छाते के नीचे
जूते गांठने वाले मोचीराम की दुकान है .
सदियां बीत गईं
दुकान और मोचीराम जस के तस है
एक पल को भी नहीं हटे
हर हाल में डटे रहे
शाम ढले जब मोचीराम जाता है
औजारों का झोला और छाता लपेट कर
वह दुकान वहीँ मौजूद रहती है
स्मृतियों के प्रस्तर पर जमी जिद्दी फफूंद की तरह .
मेरी खिड़की पर ठुँकी हुई है पतली जाली के
हर बारीक सुराख़ में
मौजूद है मोचीराम का अक्स
एकदम जीवंत दृश्यावली की तरह
हरदम सक्रिय हरदम मुस्तैद
अपने हाथ की उँगलियों से
अपने वर्तमान को हौले हौले ठोंकता सिलता
धूसर हौंसले को लगातार चमकाता हुआ .
मोचीराम कितने बरस का है
किसी को ठीक ठाक तरीके से नहीं मालूम
वह तब भी था जब पंडित नेहरु की मोटर कार
सामने वाली सड़क से होकर गुजरी थी .
वह तब भी था जब सारा शहर
सन सैंतालीस के दंगों में धूं –धूं कर जला था .
वह भी था जब जान बचाकर जाने कहाँ से चले आए थे
हजारों औरत मर्द बच्चे चीखते चिल्लाते
और डरे हुए हजारों लोग गुम हो गए थे
रक्ताभ आंधी के थपेडों में .
वह अट्ठारह सौ सत्तावन के
गदर के दौरान भी था
जब बूढ़े पीपल पर जा लटकी थी
जुझारू लड़ाकों की मृत देह
अबाबील के घोंसलों की तरह .
शायद इससे पहले भी था मोचीराम
इसके बाद भी है वह मौजूद रहेगा
हर छोटी बड़ी वारदात का साक्षी बना
अपनी पनीली आँखों को आस्तीन से पोंछता हुआ .
मोचीराम अजर है अमर है
समय को बड़ी शिद्दत के साथ
अपने से दूर ढकेलता हुआ
अपनी छतरी को बड़ी जतन से सहेजता
अपने मामूली से औजारों से
जिंदगी की भीषण जंग लड़ता हुआ
उसकी लड़ाई कभी खत्म नहीं होने वाली .
मोचीराम को देखते देखते
मेरी ऑंखें बूढ़ी हो चलीं
सब कुछ धुंधला धुंधला सा दिखता है
पर इतना भर तो दिखता ही है
कि वह खिड़की के आरपार अभी तक डेरा जमाए है
वर्तमान के जूतों पर
अपनी ऐतिहासिक समझ की पैबंद लगाता
उसे दुरुस्त करने की पुरजोर कोशिश करता .
काली मटमैली सड़क के किनारे
एक बूढ़े पीपल के तने के करीब
फटेहाल छाते के नीचे
जूते गांठने वाले मोचीराम की दुकान है .
सदियां बीत गईं
दुकान और मोचीराम जस के तस है
एक पल को भी नहीं हटे
हर हाल में डटे रहे
शाम ढले जब मोचीराम जाता है
औजारों का झोला और छाता लपेट कर
वह दुकान वहीँ मौजूद रहती है
स्मृतियों के प्रस्तर पर जमी जिद्दी फफूंद की तरह .
मेरी खिड़की पर ठुँकी हुई है पतली जाली के
हर बारीक सुराख़ में
मौजूद है मोचीराम का अक्स
एकदम जीवंत दृश्यावली की तरह
हरदम सक्रिय हरदम मुस्तैद
अपने हाथ की उँगलियों से
अपने वर्तमान को हौले हौले ठोंकता सिलता
धूसर हौंसले को लगातार चमकाता हुआ .
मोचीराम कितने बरस का है
किसी को ठीक ठाक तरीके से नहीं मालूम
वह तब भी था जब पंडित नेहरु की मोटर कार
सामने वाली सड़क से होकर गुजरी थी .
वह तब भी था जब सारा शहर
सन सैंतालीस के दंगों में धूं –धूं कर जला था .
वह भी था जब जान बचाकर जाने कहाँ से चले आए थे
हजारों औरत मर्द बच्चे चीखते चिल्लाते
और डरे हुए हजारों लोग गुम हो गए थे
रक्ताभ आंधी के थपेडों में .
वह अट्ठारह सौ सत्तावन के
गदर के दौरान भी था
जब बूढ़े पीपल पर जा लटकी थी
जुझारू लड़ाकों की मृत देह
अबाबील के घोंसलों की तरह .
शायद इससे पहले भी था मोचीराम
इसके बाद भी है वह मौजूद रहेगा
हर छोटी बड़ी वारदात का साक्षी बना
अपनी पनीली आँखों को आस्तीन से पोंछता हुआ .
मोचीराम अजर है अमर है
समय को बड़ी शिद्दत के साथ
अपने से दूर ढकेलता हुआ
अपनी छतरी को बड़ी जतन से सहेजता
अपने मामूली से औजारों से
जिंदगी की भीषण जंग लड़ता हुआ
उसकी लड़ाई कभी खत्म नहीं होने वाली .
मोचीराम को देखते देखते
मेरी ऑंखें बूढ़ी हो चलीं
सब कुछ धुंधला धुंधला सा दिखता है
पर इतना भर तो दिखता ही है
कि वह खिड़की के आरपार अभी तक डेरा जमाए है
वर्तमान के जूतों पर
अपनी ऐतिहासिक समझ की पैबंद लगाता
उसे दुरुस्त करने की पुरजोर कोशिश करता .
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" 17 अक्टूबर शनिवार 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह
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