बुधवार, 20 मई 2015

भला आदमी


वह एक भला आदमी था
चुपचाप चला गया
अपनी देह से बाहर
बिना चप्पल पहने
हालाँकि  कुछ पल पहले ही
उसने अपने से कहा था
यार बड़ी भूख लगी है .

वह एक भला आदमी था
जिसे कभी न ढंग से जीना आया
और न कायदे से मरना
ऐसे चला गया जैसे
कोई झप्पर से बाहर आये
मौसम का मिजाज भांपने  .

वह एक भला आदमी था
जिन्दा रहने की ललक कहें  या मजबूरी
उसे लगातार पता लगता रहा कि
जीने के लिए बार बार मरना होता है
फिर भी जीने लायक  पुख्ता जगह
शायद ही कभी मिल पाती है .

वह एक भला आदमी था
उसके तकिये के नीचे से मिले  हैं
कुछ हस्तलिखित पन्ने
जिनकी इबारत कविता जैसी दिखती है
लोग सशंकित हो उठे हैं
वह जितना दिखता था
उतना भला तो नहीं था .

वह एक भला आदमी था
अपनी निजता संभाल नहीं पाया
ठीकठाक तरीके से
उसके बारे में उठ रहे हैं सवाल 
वह यूं क्यों चला गया दबे पाँव
इस तरह भी कोई जाता है भला !
+++++.     
 






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मोची राम

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