बुधवार, 22 अगस्त 2018

एक बार की बात

एक बार की बात है

एक दरख़्त की डाल पर
लकड़हारे की कुल्हाड़ी चली
परिंदों से छिने उनके घरबार
बिना खिले फूल मिट्टी में जा मिले
फलित सम्भावनाये नदारद  हुई
हरियाली की सौगात लिए
आती बादलों की कतार
लौट गयी उलटे  पांव

एक बार की बात है
आदमी ने सीख ली
कद्दावर दरख्तों को
फर्नीचर  में बदलने की तकनीक
पेड़ों की जान ही सांसत में फंसी
अब कुर्सियों ही कुर्सियां है चारो ओर
मेज पर रखे गुलदान में सजते हैं
प्लास्टिक के निर्गन्ध फूल।

एक बार की बात है
लकड़ी के व्यपारी ले आये स्वचालित आरे
लकड़हारे काटने लगे लकड़ी
जंगल के जंगल गायब हुए
अब बयार तितली फूल रंग सुगंध की बात कौन करे ।

एक बार की बात है
यह आजकल की वारदात है
हरतरफ वनैली गन्ध फैली
हिंस्र आदमियत ने ओढ़ लिए  
शातिर मुखौटे
अब वे बतियाते नहीं गुर्राते हैं।

एक बार की बात है
देखते ही देखते हरियाली रक्ताभ हुई
परिंदों के कण्ठ में बसी
मधुरिम स्वर लहरी गुम  हुई
चन्द मसखरे बचे हैं
अपनी ढपली पर बजाते
तरक्की के बेसुरे राग।

एक बार की बात है
न कहने लायक कुछ बचा
न सुनने को उत्सुक कोई रहा
यह रोजमर्रा की बात है.

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मोची राम

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