शनिवार, 18 जनवरी 2020

ऑपरेशन के इर्दगिर्द

उस दिन मंगलवार था
टांग तुड़ा कर ऑपरेशन टेबल पर न होता
तो वह चोले का सामान लिए लाल लंगोटी वाले के सामने
झेंपा झेंपा सा खुद को पूर्वपरिचित आँखों से बचा रहा होता
ढंग से धार्मिक या आस्थावान न होने के बावजूद
जीवन की दूसरी पारी में वह मन्दिर तक टहल आता है
जिन्दगी में अधर्म की ही सही, थोड़ी –बहुत चाशनी बनी रहे .

उस दिन ऑपरेशन थियेटर के बाहर
जगह -जगह और क्या चल रहा था ,पता नहीं
अलसभोर उसने फज़र की अज़ान सुनी
तब कहा शायद खुद से
ए नमाजियों, मुझे अपनी दुआओं में याद रखना. 

थोड़ी देर पहले उसने कनखियों से देखा
बड़ा बेटा एक कागज को थरथराते हाथों में थामे  
गहरी सोच में डूबा था
पापा यहाँ से सकुशल निकल आये तो ठीक
न आ पाए तो ...उहूँ देखा जाएगा
छोटे ने निशब्द आश्वस्ति उकेरी थी.  

दोनों  बेटों के पास
अप्रत्याशित घटित होने की स्थिति में
आपदा  प्रबंधन के लिए यकीनन
गायत्री मंत्र के जाप के अलावा भी
कोई अनन्तिम पुख्ता प्लान रहा होगा ही.

उसका अधिकांश शरीर निस्तेज
पर कान कार्यरत थे यथावत
तभी महीन –सी आवाज़ ने
भदेस चुटकुले जैसा कुछ सुनाया
फिर खबर दी कि
उसकी  हसबेंड आज सुबह लौट  गयी खाड़ी देस
इतनी विकट सर्दी में तेरा क्या होगा ऐंजिला
हल्की सी  हंसी उठी कि थम गयी.

कुछ इस्पात के औजार खड़के
फिर एंटी सेप्टिक घोल में सराबोर आवाज़ गूंजी
कम ऑन ,कम ऑन स्टेपल करो ,आगे बढ़ो.
उसे लगा जिन्दगी  पन्ना पन्ना हुई पड़ी  है
अब वे उसे क्रमवार लगाने में लगे हैं.

बड़ा भारी है मरा ,किसी ने कहा
भारी कहाँ ये तो पेसेंट है बहना
उसे लगा कि वह स्ट्रेचर पर आलू के बोरे की तरह लुढ़का है
घर्र घर्र करता स्ट्रेचर चला
हटो चलो रास्ता दो –ले आओ.

ओह .ऑपरेशन मुकम्मल ,बेटे ने गहरी सांस ली
पत्नी ने बंद किया हनुमान चालीसा  का उच्चारण
ठण्ड के मौसम में गले पर चुह आये पसीने को दुपट्टे से पोंछा.

ऑपरेशन सक्सेसफुल –डॉक्टर ने कहा   
व्हाट्स एप मैसेज चारों दिशाओं में गया
देखते ही देखते उसके मोबाइल पर
शुभकामनाओं की अबाबीलें चिंचियाती हुई
इधर –उधर मंडराने लगीं
रसभरे वायवी केकों से मोबाइल स्क्रीन चिपचिपा उठा
उसने सही मौका समझ हल्की सी  किलकारी भरी:
तमाम आत्मीय झिडकियां निजी हलकों से तुरंत लपकीं  
बिना हिले डुले चुपचाप पड़े रहो भोंदू
चिल्ल –पापा- चिल्ल.

उस दिन शुक्रवार या शनिवार अथवा इतवार  
या उस जैसा कोई दिन रहा होगा  
जब वह वॉकर के जरिये इधर से उधर रेंगा
उसी तरह जैसे आठ या सोलह पैर वाला तिलचट्टा
एकबारगी उलट जाने पर 
तमाम कोशिशों के बाद ही सीधा  चलता है
बेढंगी चाल ही हमारे अहद की सनातन गति है.

अब वह डरता ठिठकता सहमता चलता है
मन ही मन रीझता है
चलो जी तमाम तोड़ -फोड़ ; चीर -फाड़ के बाद ही सही
आख़िरकार वह चलने  तो लगा
अब जो हुआ सो हुआ ,अच्छा ही हुआ, हुआ ही होगा.
 













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मोची राम

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