शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

मेरे पास...

 
मेरे पास छोटे छोटे सपने हैं 

या कहूँ बेतरतीब ख्वाहिशें 

इनके पीछे पीछे दौड़ते

मन तो नहीं भरा

भर आईं पिंडलियाँ

देह में खिंची रहती हैं सीमा रेखाएं.

 

मेरे पास उमंग है

या कहूँ दीवानापन

इसने कभी थकने न दिया

पूरी शिद्दत के साथ जिया

जीने का कोई तयशुदा

प्रारूप नहीं था फिर भी.

 

मेरे पास उतावलापन है

या कहूँ अधैर्य

धीमी राफ्तार वाला घटनाक्रम

खीझ से भर देता है

फास्ट फॉरवर्ड मोड में

आती हैं फर्जी तसल्लियाँ .

 

मेरे पास उत्सुकता है

या कहूँ उम्मीद के चंद कतरे

इनके जरिये कुछ नहीं होता

निराधार बतकही के अलावा

बंद कमरे में बहसियाते कापुरुष

क्रांति के सूत्रधार नहीं बनते.

 

मेरे पास घटाटोप अधेरा हैं

या कहूँ चकमक पत्थर

जिसमें चमक का उठना निश्चित है

अँधेरा जितना सघन होगा

रौशनी उतनी अधिक होगी

कालिमा देर तक नहीं टिकती.

 

मेरे कोई निजी एजेंडा नहीं

या कहूँ खामोख्याली

मेरे भीतर कोई अजायबघर नहीं

न उसमें सजाने लायक कोई स्मृति चिन्ह

मूर्खताओं को ऐतिहासिक कह उन्हें संरक्षित करना

मसखरेपन के सिवा  कुछ भी नहीं .

++++

 




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मोची राम

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