बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मेज़ पर रखा सफ़ेद हाथी

 


लिखने की मेज़ पर सफ़ेद हाथी है

उसके हौदे पर उगा है

हरेभरे पत्तों वाला मनीप्लांट

वह तिरछी आँखों से देख रहा

उँगलियों से उगते कविता के कुकरमत्ते

जल्द ही यहाँ उदासी की फ़सल पनपेगी.

 

गुलाबी फ्रॉक पहने एक लड़की टहलती चली आती है

रोज़ाना मेरी  बोसीदा स्मृति  के आसपास

मैं उसका नाम लिए  बिना

पूरी शिद्दत से उसे पुकारता  हूँ

वह देखते ही देखते तब्दील हो जाती है

किताब के पन्नों के बीच  रखे बुकमार्क में.

 

मेरे इर्दगिर्द न जाने क्या क्या है

प्यार की दीगर स्मृति जैसा कुछ

कभी किसी उदास उचाट दिन

कागज पर खींची  बेतरतीब लकीरों का ज़खीरा

ख़ुद को याद दिलाते रहने  के लिए

कूटभाषा में यहाँ वहां दर्ज़ चंद हिदायतें.

 

कोई समझा रहा

मेज पर हाथी पर सवार मनीप्लांट नहीं

लकी बैम्बू सजाओ या

जेड प्लांट या शमी का पौधा लगा लो

या  घोड़े के नाल के आकार वाले  पेपरवेट के नीचे  

अपना मुकद्दर  दबा  कर रख लो.

 

लेपटॉप के भीतर रखे पन्ने

भूल चुके  हैं हवा में फड़फड़ाना

उसमें सहेज कर रखी किताबें

कब करप्ट हो जाएँ,पता नहीं

मेज पर रखा सफ़ेद हाथी बिना हिलेडुले

शरारती  बच्चे सा हौले से हंसता है.

 

 

 

 

 

1 टिप्पणी:

मोची राम

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