मंगलवार, 4 मई 2021

अभी अभी


 


अभी अभी एक लड़की नहा कर गीले बाल लिए छत पर आई है

जहाँ तेज धूप से लिपटी गर्म हवा, धूल के कण और उचाट उदासी है

सामने वाले घर की खिड़की अधखुली है

जहाँ हमेशा एक दुबला लड़का हथेली पर चेहरा टिकाये रहता है

कहते हैं कि सदियों से वह वहां खड़ा

आती जाती लडकियों की ओर नि:शब्द फब्तियां उछालता है

कभी कभी उसकी युक्तियों कामुकता भरी होती  है

फिर भी उस लड़के के होने भर के अनुमान से

कतिपय मादा देह रह-रह कर सिहर-सिहर उठती हैं.  

 

अभी अभी भरी दोपहर में गली के दूसरे सिरे से

कुत्तों के गुर्राने और बिल्लियों के रोने की भ्रामक आवाजें आई हैं  

अपने एकांत में घिरा घर का इकलौता बुजुर्ग सोचता है

हरदम गली में चिल्ल-पों करते बच्चे कहाँ गुम हुये यकायक

वे छुपम-छुपाई खेलते कहीं बड़प्पन की तलाश में

वक्त की अल्पज्ञात दिशाओं में तो नहीं निकल गये

गली में फैली सूखी पत्तियों के ऊपर से 

किसी अपशकुन की तरह दूर सड़क से हूटर बजाती एम्बुलेंस गुजरी है.

 

कोई कहीं कोने में चुपचाप खड़े आदमी से कोई पूछ रहा है

ए , तू यहाँ क्यों खड़ा , मंशा क्या है

यहाँ तेरे लायक कोई नहीं दूर दूर तक

वैसे तेरी उम्र क्या है ?

आदमी खड़ा खड़ा उँगलियों पर गिनने लगा

अतीत के स्याह सफ़ेद पन्ने

बोला, तुमने तो यह क्या काम दे दिया मुझे

अब बाकी बची उम्र तो बेसाख्ता बीत जाएगी

समय की गिनतियों को जोड़ते-घटाते-मिटाते.

 

छोटे से शहर में आजकल सिर्फ दीवारे ही दीवारें हैं

कोई खुलेआम यहाँ ताकाझांकी नहीं करता

हर सुगबुगाहट से बुरी खबर आती है

किसी घर के भीतर खाली बर्तनों से भूख रिसती है

बच्चे रोते-पीटते झपटते हैं एक दूसरे पर

उन्होंने चमत्कारिक मदद के लिए

आसमान की ओर ताकना छोड़ दिया है

वहीँ कहीं एक घर ऐसा भी है

जिसके अंदर की बेमकसद ठण्डक में गलीचे पर लेटे

भरपेट खाए-अघाए लाला-लालाइन खेलते हैं लूडो

सोचते हैं,आओ चलो हँसते खेलते दबे पाँव

अपने वक्त के आरपार निकल जाएँ.

 

 

 

 

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मोची राम

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