रविवार, 9 मई 2021

एक बार


 

 एक बार बस एक ही बार

किसी दिन किसी लम्हे मुझे लगा
कि शायद यह प्यार है
कान के नज़दीक की शिरायें
हौले से कम्पित हुईं
कनपटी पर ताप बढ़ा कि
भभक उठा पूरा वजूद
वैसे यह आवेग जैसा कुछ था बेशक
मुझे यकीन नहीं होता ,यकीनन.
आदिम प्यार के किस्से लोक में प्रचलित हैं
उनसे इतर मेरे पास दुनियावी पैमाने से मापने के
इनेगिने कदीमी उपकरण हैं
जैसे जाड़ों में धूप की लकीर जब
जर्जर हुए भुतही इमारत के कंगूरे पर जा टिके
तो मानना पड़ता है कि लगभग
अब परछाईयां उलांघने वाली हैं समूचे दिन.
प्यार सिर्फ इतना ही है, बस इत्ता सा
कि लगे मन के भीतर कुछ प्रत्याशित घटा
कोई तेज रफ्तार रेलगाड़ी गुजरे
पटरियों के नज़दीक के खेतों में उगी
गेहूं की ताजातरीन बालियों में हरकत हो
हवा में घुल जाए गेहुँआ दूध की अनचीन्ही गमक.
मैंने बार –बार खुद से सवाल पूछा
क्या यही होता है प्यार की गीली जमीन से होकर गुजर जाना
जिस पर ठहरे उदास पदचिन्हों को
प्रेम कथाओं के पन्नों में संरक्षित कर
हम सदियों से बेवजह मुग्ध हुए जाते हैं
सदियाँ बीती मैं देह की दहलीज के मुहाने खड़ा
न जाने कब से अनागत जवाब की बाट जोहता हूँ.

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मोची राम

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