मेरी आँखों के ककून में
सपने कभी नहीं टिकते
उनके पंख निकल आते हैं
तो तितली बन उड़ जाते हैं
सच तो यह है
मेरी आँखों को सपने सहेजने का
सलीका कभी नहीं आया .
बरसों बरस की डेली पैसेंजरी के दौरान रची गई अनगढ़ कविताएँ . ये कवितायें कम मन में दर्ज हो गई इबारत अधिक हैं . जैसे कोई बिगड़ैल बच्चा दीवार पर कुछ भी लिख डाले .
बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...
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