कविता के लोकतंत्र में
राजा खुलेआम निकलता है
मौलिक नँगई का राजदण्ड लिए
नंगे को नंगा कहने वाला बच्चा
पोर्नोग्राफी पर निगाह गड़ाये है
ज़रा -सी फुरसत मिले
तो दोबारा सच बोले.
बरसों बरस की डेली पैसेंजरी के दौरान रची गई अनगढ़ कविताएँ . ये कवितायें कम मन में दर्ज हो गई इबारत अधिक हैं . जैसे कोई बिगड़ैल बच्चा दीवार पर कुछ भी लिख डाले .
महामारी के भीषण दिनों में उन लोगों ने बातून नौनिहालों को जबरन सिखवाया सिर्फ इशारों ही इशारों में अपनी जरूरत भर की बात कह लेना किसी मूक बघिर...
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