मंगलवार, 4 सितंबर 2018

उसने याद किया ,,,,,



उसने याद किया
हिचकी आईं ,एक बाद एक
और मैं चल दिया उसे खोजने 
मेरे पास था उसका डाक का
आधा अधूरा पता बिना पिनकोड वाला .

कुछ ही देर में
देह हो गई पसीने से तरबतर
लेकिन वह जगह नहीं मिली
जिसके आसपास वह मिल जाता बाट जोहता
उसके जैसे लोग अपने पते पर नहीं मिलते .

पते में नहीं लिखा था
फिर भी मुझे मालूम था
वह रहता है लद्दूमल की सराय के पास
जिसके चबूतरे पर बैठ कल्लू हलवाई का नौकर
बूंदी के लड्डू छानता है.

बहुत खोजा सबसे पूछा
सराय और उसके चबूतरे का कोई
सुराग तक नहीं मिला
लद्दूमल ,कल्लू और उसका नौकर कहाँ गए
किसी को इसका कुछ नहीं पता.

उसके घर से कुछ दूरी पर था
पाकड़ का एक छायादार पेड़
जहाँ बैठ वह कभी कभी लिखता था
उसे कवि होने की गलतफहमी थी
पर इससे किसी का पता मुकम्मल नहीं होता . 
.
छोटे शहरों में नाम भर से मिल जाती है
किसी के होने की पूरी जानकारी
मैं तो इसी मुगालते में था
नहीं जानता था कि बीतते समय के साथ
छोटे शहर बड़े होकर अपने बाशिंदों को भुला जाते हैं.

मैं उसे तलाशता रहा पूरी शिद्दत के साथ
फिर लौट आया झक्क मार कर
डाल आया लैटर बॉक्स में चिट्ठी
उसका अस्फुट पता लिख कर
जैसे घटाटोप अँधेरे में जला आये कोई दिया .

इसके बाद न उसकी कोई खबर मिली
न याद वाली हिचकी आई
बस लौट आया एक दिन भेजी चिट्ठी का लिफाफा
लिखा था जिस पर
दिए गए पते पर उगी हैं बेतरतीब झाडियाँ
जिन पर रहता है गिलहरियों का कुनबा.

एक लावारिस दरख्त पर अपनी रानी की खातिर 
दिन-रात शहद ढोहती  कमेरी मधुमक्खियां  
नेवले टहलते हैं बेख़ौफ़ ,सांप को तलाशते 
चिड़िया लौट लौट आती हैं घोंसले में 
अपने बच्चों की भूख की खातिर.
यह चिट्ठी किसे दें
उसकी शिनाख्त ज़रा साफ़ साफ़ लिखें !

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मोची राम

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